अहिंसा तत्त्व - दर्शन | Ahinsa Tattv Darshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ahinsa Tattv Darshan by उपाध्याय अमरमुनि - Upadhyay Amarmuni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उपाध्याय अमर मुनि - Upadhyay Amar Muni

Add Infomation AboutUpadhyay Amar Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अहिसा तस्व-दर्शन नो डालता है, तव वह र्या, देष भौर कठ्ह से ऊपर उठ जाता) जव वह्‌ मनासवत होकर श्रद्धापरवंक आत्म-पोघन की प्रक्रिया प्रवत्त हो जाता है तव वह मोक्ष पा लेता है। उसे शक च मी इघर-उपघर होने की, मगल-वगल में गति बदलने की जरूरत नहीं ई 1 वहं जहां हौ, वदी रहै, आत्मस्य रहे । वस्तुत वहीं मे ऊ्वै- मूख जमृत्तफी धारा वह रही है ।” यह्‌ सुनकर वे अजेन विद्वान्‌ हे मौर बोले फि ““मोक्ष-निद्धि के लिए बडे गजव फा रूपक है यह्‌ ।” तो मैंने कहा, “यह वनावट नहीं ह, बल्कि जंन तत्व-चित्तन की अपनी एक विधेषता है ।” जैन धर्म अहिसा की अमृत-गगा का पावन न्रोत अपनी लात्मा के अदर ही ता है। यही मेरे कहने का सार था । वह गगा कौनसी है जो हमारे ही अदर बह रही है * वह अहिंसा और सत्य की गगा है जो हमारी नस-नस में प्रवाहित हैं । यदि हम उस पावन गगा मे स्नान नहीं करेंगे तो हमारा जीवन पतरित्र नहीं हो सकेगा । जीवन को पवित्र करने के लिए अहिसा एक जीवन गगा है, जिसमे अवगाहन करने के वाद मानवता का सपूर्ण विकास हो जाता हं मीर दम व शोपण का जो नकाव मानवता के सुदर चेहरे पर भाज पड गया है, वह सहज ही फट जाता है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now