जीवन और शिक्षण | Jivan Aur Shikshan

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Jivan Aur Shikshan  by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ जीवन श्रौर शिक्षण परिश्रम करना पडता है । श्रात्मा' सबसे श्रधिक महत्वकी वस्तु होनेके कारण वहु हरेकको हमेशाके लिए दे डाली गई है। ईरवरकी ऐसी प्रेम- पूणं योजना है । इसका खयाल न करके हम निकम्मे, जड जवाहरात जमा करने जितने जड बन जायं॑ तो तकलीफ हमें होगी ही। पर यह हमारी जड़ताका दोष है, ईश्वरका नहीं । जिंदगीकी जिम्मेदारी कोई डरावनी चीज नहीं है । वह म्रानंदसे ्रोत- प्रोत है, बद्चर्ते कि ईश्वरकी रची हुई जीवनकी सरल योजनाको ध्यानमें रखते हुए ्रयुक्त वासनाश्रोको दबाकर रखा जाय । पर जसे वह श्रानंदसे भरी हुई वस्तु है वेसे ही दिक्षासे भी भरपूर दै। यह्‌ पक्की बात समभनी चाहिए कि जो जिंदगीकी जिम्मेदारीसे वंचित हुश्रा, वह सारे दशिक्षणका फल गंवा बेठा । बहुतों की धारणा है कि बचपनसे जिंदगीकी जिम्मेदारी का खयाल शभ्रगर बच्चोंमें पेदा हो जाय तो जीवन कुम्हला जायगा। पर जिदगीकी जिम्मेदारीका भान होनेसे अ्रगर जीवन कुम्हालता हो तो फिर वह जीवन-वस्तु ही रहने लायक नहीं है। पर श्राज यह धारणा बहुतेरे दिक्षण-शास्त्रियोंकी भी है श्रौर इसका मुख्य कारण है जीवनके विषयमें दुष्ट कल्पना । जीवन मानी कलह, यह मान लेना । ईसप-नीतिके श्ररसिक माने हुए, परन्तु वास्तविक ममेको समभनेवाले मुगंसे सीख लेकर ज्वारके दानोकी भ्रपेक्षा मोतियोंको मान देना छोड़ दिया तो जीवनके श्रंदरका कलेह जाता रहेगा श्रौर जीवन में सहकार दाखिल हो जायगा । बन्दर के हाथ में मोतियोकी माला (मरकट-भूषण भ्रंग) यह कहावत जिन्होंने गढ़ी है, उन्होने मनुष्यका मनुष्यत्व सिद्ध न करके मनुष्यके पूवंजोके संबंधमे डाविन का सिद्धान्त ही सिद्ध किया है । हनुमानके हाथमे मोतिययोकी माला वाली कहावत जिन्होंने रची, वे श्रपने मनुष्यत्वके प्रति वफादार रहे । जीवन भ्रगर भयानक वस्तु हो, कलह हो, तो बच्चोको उसमे दाखिन मतकरो श्रौर खुद भी मत जियो । पर श्रगर जीने लायक वस्तु हो तो लड़कोंको उसमें जरूर दाखिल करो । बिना उसके उन्हें शिक्षण नहीं मिलने- का । भगवद्गीता जेसे कुरुक्षेत्रमें कही दई, वेसे शिक्षा जीवन-क्षेत्रमें देनी चाहिए, दी जा सकती है। 'दी जा सकती है', यह भाषा भी ठीक नहीं है, बहीं वह्‌ मिल सकती है ।




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