समाज - शास्त्र के मूल - तत्त्व | Samaj Shastr Ke Mul Tattv

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Samaj Shastr Ke Mul Tattv by प्रो. सत्यव्रत सिद्धांतालंकार - Prof Satyavrat Siddhantalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मचयं-सन्देश [ लेखक--प्रो ° सत्यत्रत सिद्धान्तालंकार | नवयुवकोको श्रह्मचये' जेसे गम्भीर विषयपर, सरल-सुन्दर भाषामें जो- कुछ कहा जा सकता हं, इस पुस्तक मं कह दिया गया हं । स्वगवासौ स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराजने इस पुस्तकको भूमिका लिखो थी । स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराज भारत-भूमि के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षाके कषेत्रम 'ब्रह्मचय को क्रियात्मक महत्त्व देनेके लिये गुरुकुल कांगडीको स्थापना कौ थी । एते महापुरुष ने इस पुस्तककी भूमिका इसौलिये लिखी थी क्योकि उन्होने पुस्तकके महत्त्वको देख लिया था । इस पुस्तक ने हिन्दी-साहित्यमें श्रमर स्थान बना लिया हे। पुस्तकके चार संस्करण निकल चुके हें, पांचवें संस्करणका प्रबन्ध हो रहा हे। पुस्तककी श्रेष्ठता इसीसे सिद्ध हे कि इसके गुजराती में दो स्वतंत्र श्रनवाद हो चके है खंडवाका कमेवीर' पत्र लिखता है--“इस विषयपर हिन्द समसे श्रधिक प्रामाणिक, सबसे श्रधिक खोजयपणं श्रौर सबसे श्रधिक ज्ञातव्य बातोंसे भरी हुई यही पुस्तक देखने में श्रायी है । दिल्लीका ' अजु न” लिखता है--“हम चाहते हे कि प्रत्येक नव- युवकके हाथमे यह्‌ पुस्तक हो 1 लखन ङकी 'माघुरी' लिखती दै--“भाषा परिमाजित श्रौर वर्णन- शेली एकदम श्रछूती है । मालम होता है, कोई दटिज्ञानवेत्ता सांसारिक तत्त्व- विवेचनापर व्याख्यान दे रहा हैं । श्राजकल जितनी पुस्तके इस विषयपर निकली हैं, उन सबमें यह बढ़िया हे ।” पुस्तक सचित्र तथा सजिल्द हं । मूल्य साढ़े चार रुपया । ह ५ िच्षा-साख्र लेखक--प्रो० सत्यब्रत सिद्धान्तालंकार तथा आचार्या चन्द्रावती लखनपाल एम० ए०, बी० टी० (एम० पी ०) 'शिक्षा के सम्बन्धमें जितने श्राधुनिक विचार हे, वे] सब इस प्रन्थमें, थोड़े-सेमें, श्रत्यन्त सरल तथा रोचक भाषामें दे दिये गये हे । शिक्षाके सिद्धान्त ( 711611८5 ० र्वप्लम्तलाः ), शिक्षा कौ विधि ( ८100 0 प ५207011 )› शिक्षा का विधान ( (षटभााऽव््तजा ० हतपल्ब्धणा ) तथा भारतीय-रिक्नाका श्रादिकालसे श्राजतक का इतिहास (प्ाशणफा [0 ९५८८०८०7 } --ये सब विषय इस प्रन्थमें एक स्थान पर दे दिये गये हें । इस पुस्तकको उपयोगिता इसी बात से स्पष्ट है कि शिक्षा-संस्थाश्रों में जहां-जहां 'शिक्षा' विषय पढ़ाया जाता है, वहां-वहां इस पुस्तकका सर्वोत्कृष्ट स्थान है । पुस्तकको भूमिका शरोसम्पूर्णानन्वजीकी उस समयकौ लिखो हई हे जब वे शिक्षा-मन्त्रो थे । सजिल्द पुस्तकका दाम तोन रुपया ।




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