सफ़र | Safar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वद किसकी कसीर थी ? | | १५. रोज अखबारों में छपता है । देश के लिए दी-जिसे सब कुहं करना है । ' लोगों के बीच खड़ा हुभ्रा वह कैसा लग रहां है ! सन्ध्या से रात्रि दे आई थी | लाग चले गये थे । बह ्रन्दर कमरे में बैठा था । सुभद्रा महराज के खाने की पूरी व्यवस्था समभा रही थी । उसे जरा-जरा सी बात का खयाल था श्रौर एक-एक बात को, फिरफिर कर, दुद्दरा-तिहरा समभाती थी । उसने सुना, उसके स्वामी पुकार रहे हैं । वह शरमाई, सकुचाई तर लाज से दबी, धाती के पतले से सावधानी से सिर ढके, कमरे में दाखिल हुई । उसने नमस्ते किया शरोर चुप्चाप एक ओर बैठ गई | वह उसे एकं बार देखकर चुप रह गया । उसके स्वामी ने कहा, “तुम शादी मेन ऋ सके*थे; नहीं ते परिचय कराने की नाबत क्यों आती ^ 'वह भीता एक नई बात थी। बोरिया-विस्तर बांधकर गाड़ी पर चढ़ा ही था कि गिरफ्तार हा गया । भई, तुम अपनी ससुराल गये और मैं अपनी... ...कहकर वह हँस पड़ा था । सुभद्रा लाज से गड़ी जा रही थी। वह बेला, 'देखिए मैं इनसे उम्र में छोटा हूं। मेरे कोई भाभी भी नहीं है। अब आप मेरी भाभी रहीं ।' सुभद्रा की सम में कुछ नहीं ञ्राया । बात सुलभाते हुए पति ने कहा, सुनो, हम दोनों बचपन में एक साथ पढ़ते थे । साथ ही साथ वकालत भी की । आज मले ही लोगों के लिए, यह कुं दे, लेकिन मेरे लिए, तो यह पहले जैसा ही है ।' फिर कुछ रास बातें नहां हुई । सुभद्रा कौ वह बहुत समीप लगा । उसके स्वामी का सगा क्या उससे दूर का हे? --नोकरानी ने आकर कहा, “नान कर लीजिए, गरम पानी रख दिया है।” सुभद्रा चौंकी; देखा, साढ़े आठ बज गये हैं । बात टूट गई । वह




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