बुद्ध और बौद्ध - धर्म | Buddh Aur Bauddh - Dhrm

Buddh Aur Bauddh - Dhrm by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ध श्र घोद-धमं ट (ोयथा्थं कायं (५) यथाथं जीवन (६) यथाथ उ्योग (५) यथाथ मनस्थिति (८) यथार्थं ध्यान । उसने कद्दा--दे भिक्चुओ '! ये प्राचीन सिद्धान्त नहीं हैं । उसने काशी के उग्ग नामक मठ में बैठकर सत्य के राज्य के इस प्रधान पहिये को चला दिया, जो किसी ब्राह्मण के द्वारा, किसी भी देवता के द्वारा, याश्रौर किसी के हारा, कभी नहीं उलटाया जा सकता था । पाँचों शिष्यों ने इसक धमं को स्वीकार किया, रौरव ही इसक सबसे पहले शिष्य हुए । इसके पश्चात्‌ काशी के प्रसिद्ध सेठ के पुत्र यश इसका गृहस्थ शिष्य हुआ । इसके तीन महल जाड, गर्मी, वषा के लिए श्रलग थे। एक दिन, रात्रि को वह जग पड़ा श्रौर कमरे में उसने गायि- काओं को सोते हुए देखा । वे सब बेसुध पड़ी थीं । उनके कपड़े श्मौर .गाने-वजाने का साज-सामान श्रादि भी श्रस्तव्यस्त पड़ा था । इस युवक ने, जो सुख के जीवनसेत्प्तदहो चुका था, जो-कुछ देखा, उससे इसे घृणा हुई और उसने गंभीरता से सोचते हुए कहदा--शोक ! केसा दुःख श्रौर कैसी विपत्ति है । और वह घर से बाहर चल दिया । प्रभात का समय था । गौतम ने उसे देखा--बह इधर-उधर घूमकर वायु-सेवन कर रहा था । उसने उसे यद्द कहते हुए सुना- शोक ! केसा दुःख और केसी विपत्ति हे !! उसने इससे कहा--दे यश ! यहाँ आकर बेठो, मैं तुम्हें सत्य का मांगे सिस्वाउमा ।




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