पटखंडागम | Patkhandaagam

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Patkhandaagam by नेमिनाथ - Neminath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) करने पर उत्पन्न होते है श्रौर फिर यहीं पर प्रसंगसे छेढदके दस भेंदोंका स्वरूपनि्देश किया गया है । अल्प- बहूत्वमें पांच शरीरोके श्रविभागप्रतिच्छेदाकर श्रल्पव्रहुस्यका विचार करके शरीरविखमोपचयप्ररूपणा समास की गई है । विस सो पच य प्ररूपणा -- जी पाँच शरीरके पुद्गल जीवने छेड़ विह ग्रौर जो श्रौदायिक- भावको न छोड़कर सब लोकमे व्याप्त होकर अवस्थित हैं उनकी यहाँ विखशोपचय संज्ञा मानकर विखसोपचयप्ररूपणा की गई है } एके एके जीवप्रदेश श्र्थात्‌ एक एक परमाशु पर सब्र जीवोसे श्रनन्तगुणे विससोपचय उपचित रहते हैं श्रौर वे सब लोकमें से झाकर विखसोपचयरूपसे सम्बन्धकों प्राप्त होते हैं । या वे पांच शरीरके पुद्गल जीवसे अलग हकर सत ्रकाश प्रदेशोसे सम्बन्धको प्रास्त होकर रहते द । इस प्रकार जीवसे लग होकर सब लोकको प्रात हुए; उन पुदूगलोकी द्रव्यहानि, सेत्रदानि. कालहानि श्रौर मावहानि किस प्रकार होती है, त्रागे यह बतलाया गया है श्र यह बतलानेके बाद जीवसे श्रभेदरूप पॉच शरीरपुद्गलोंके विख्रसापचयका माहात्म्य बतलानेके लिए. अल्पबहुत्वका निर्देश किया गया है । तथा मध्यम प्रसंगसे जीवप्रमाणानुगम, प्रदेशप्रमाणानुगम श्र इनके अल्पबहुत्वका भी विचार किया गया हे । इस प्रकार इतना विचार करने पर बाह्मवर्गणाका विचार समास होता है ! चूलिका पहले जो श्रार्थ कद आये हैं उसका विशेपरूप्रस कथन करना चुलिका है । पहले “जत्थय सरदि जीवों” इत्यादि गाथा कह आये हैं । यहां पर सर्वं प्रथम इमी गाथाकरं उसगधंका विचार किया गया है ) ऐसा करते हुए बतलाया है कि प्रथम समय एक निगाद जीयके उत्पन्न होने पर उसके साथ श्रनन्त निगोद जीव उत्पन्न होते ह । तथा जिस समय ये जीव उत्पन्न होते हैं उसी समय उनका शरीर श्रौर पुलवि भी उत्पन्न होती है । तथा कहीं कहीं पुलविकी उत्पत्ति पहले भी हौ जाती है, क्योकि पृलवि श्रनेक शरीरोका आधार है, इसलिए उसकी उत्पत्ति पहले माननेमें कोई बाधा नदी श्राती। साधारण नियम यह है कि श्रनन्तानन्त निगोद जीवोका एक शरीर होता है और असंख्यात लॉकप्रमाण शरीरोकी एक पुलवि होती हैं । प्रथम समयमें जितने निगोद जीव उत्पन्न होते हैं दूसरे समयमें वहीं पर श्रसंख्यातगुशे हीन जीव उत्पन्न होते है । तीसरे समयमे उनते भो श्रसंख्यातगुणे हीन जीव उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार श्रावलिके श्रसंख्यातवे भागप्रमाण काल तकं उत्तरोत्तर श्रसंख्यातगुणे हीन जीव उन्न होते हँ । उसके बाद कमसे कम एक समयकरा श्रौर श्रधिकसे धिक अआवलिके त्रसख्यातवें मागप्रमार कालका श्रन्तर पड़ जाता है । पुनः श्रन्तरके बादके समयमे श्रसंख्यातयुणे हीन जीव उन्न होते है श्रौर यह क्रम त्रावलिके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण काल तक चालू रहता है । इस प्रकार इन निगोद जीवोंकी उत्पत्ति श्रौर श्रन्तरका क्रम कहकर अद्धाअल्पबहुत्व श्रौर जीव अल्पबहुत्वका विचार किया गया है । श्रद्धाग्रल्पबहूत्वमं सान्तर समयमे श्रौर निरन्तरसमयमे उत्पन्न होनेवाले जीवोका ग्रल्पवहुत्व तथा इन कालोंका अल्पबहुत्व विस्तारके साथ बतलाया गया है । जीव ल्य बहुत्वे कालका ग्राश्रय लेकर जीवोंका श्रल्पवहुत्र बतलाया गया है । इसके बाद स्कन्ध, व्रणडर, श्राघाम श्र पुलिवियोंमें जो बादर श्र सूदम निगोद जीव उत्पन्न होते हैं वे सब पर्याप्त ही होते हैं या श्रपर्याप्त ही होते हैं या मिश्ररूप ही होते हैं इस प्रश्नका समाधान करते हुए प्रतिपादन किया है कि सब बादर निगोद जीव पयसि ही होते दै, क्योकि श्रपय्तकांकी च्रायु कम होनेसे वे पहले मर जाते है, इसलिए पर्यास जीव ही होते है । किन्तु इसके बाद वे मिश्ररूप होते है. क्योकि बादमं पर्याप्त और शपर्याप्त बादर निगोद जीवोंके एक साथ रहनेमें कोई बाधा नहीं आती । किन्तु सूदचम निगोद वगणामें सभी सूदम निगोद जीव मिश्ररूप ही ते हैं. क्योकि इनकी उत्पत्तिकें प्रदेश श्रौर कालका कोई नियम नहीं है । इस प्रकार जत्थेय मरदि जीवोः इत्यादे गाधाके उत्तराघका कथन करके उसके पूर्वाघ॑ंका विचार करते हुए. बतलाया गया है कि जो बादर निगोद जीव उत्पत्तिके क्रमसे उत्पन्न होते हैं श्रौर परस्पर बन्धनके




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