रसतंत्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह द्वितीय खण्ड | Rastantrasar Va Siddha Prayog Vol 2
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.92 MB
कुल पष्ठ :
653
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about एच. आर. शिवदासानी - H. R. Shivdasani
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कूपी पक््च॑ रसायन और भस्म र४ मात्रा--२ से चार रत्ती सक्खन-मिश्री शहद या दूध के साथ देवं। गुणुघसं--शीतल रशामक अस्लता नाशक और उदरवातहर है । इसका उपयोग सुक्ता पिष्टी के समान होता है ऐसा आर्चाय- जीका मत हैं। विशेष गुणघ्म रसतन्त्रसार प्रथम खण्ड में दिया है । चन्दनादि झक--चन्दन चूर्ण सौसमी-गुलाव के फूल केवड़े के फूल और कमलपुष्प को १६ गुने जल में मिलाकर डे के खींच लें । २७ प्रचाल भस्म | प्रथमविधि--प्रबाल शाखा २० तोले को १ सेर गोमूत्र में डालकर मन्द्राग्नि पर उबालें । गोमूत्र चतु्थाश शेपरहदनेपर हांडी को नीचे उतार लेबें । शीतल होने पर प्रवाल को जल से थी नींबू के रस में ३ दिन तक डुवो देखें । चोथे दिन प्रवाल को जलन थी लेने पर उपर से सफेद हो जाती है । पश्चात् उसे सराव सम्पुट में वन्द कर लघु पुट देवें। स्वाज्ञ शीतल होने पर निकाल घी कुंचार के रस में १९ घण्टे खरल कर २-२ तोले की टिकिया बनाकर सूये के तेज ताप में सुखाबें । फिर सराव समस्पुट कर गजपुट में फूंक देने से श्वेत भस्म वचन जाती है। इस भस्म को लिह्ला पर डालने से खारापन नहीं जाना जाता एवं नहीं फटती | श्रीं. पं० हरि नारायणजी शर्मा आयुर्वेदाचाय मात्रा--१ सेर ४ रती दिनमें २ से ३ वार रोगालुसार अनुपानके साथ देवें । उपयोग--यह भस्म सब प्रकारके ज्वरमें दोपपचनके लिये अति हितावद्द हैं । कब्जद्दो तो उसे भीदूर करती है ।
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