कुल्ली भाट | Kulli Bhaat

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Kulli Bhaat by सूर्यकांत - Suryakant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वल्ली भाट १३ बडा आदमी कुल्ली को कोई नहीं मिला, जिसे मित्र रामझकर गर्दन उठाते, एक “सरस्वती '-सपादक प ० देवं,दत्त शुक्ल को छोड़ कर; लेकिन शुक्लजौ का बडप्पन जब उन्हे मालूम हुआ, तब मरने के छ महंने रह गए थे, मुझो से सुना था । सुनकर गदन उठाई थी, साँस भरी थी, और कहा था--“वह मेरे लंगोटिया यार है। हम मदरसे मे साथ पढे हैं ।”” मुझे हंसता देख फिर छोटे पड़े, पुछा--“'देवीदत्त बडे आदमी हैं?'' मैंने व हा--आपको मदरसे को याद आ रही है । जिस पत्रिका के आचायं प० महावोरप्रसाद जी द्विविदो सपादक थे, उसके अब शुकल- जोहें।”' न-ज'ने क्यो, कुल्ली को फिर भी विद्वास न हुआ । मैं सोच रहा था, या तो कुल्ली मदरसे मे शुक्लजी से तगड़े पड़ते थे; या--याद आया, शुक्लजो का बसवाड़े के कवि कठाग्र है कुल्लो को दोस्ती के कारण । वल्ली गुरुस्थान पर है। मुझे भी उन्होने कुली (एक दव ) पर चढाया था, नर हरि, हरिनाथ,ठाकुर, भवन आदि -- मालूम नही--कितने कवि गिनाए थे अपने वश के । मुमकिन है, इसलिये भी कि घाक जमाने में मुझे कामयाबी न होगा, यह मैं बीस साल से जानता हूं । अलावा मेरी दृप्टि का अप्रतिष्ठा-दोप कर दे । पर कुल्ली को मालूम न था कि में कविता तो लिखता हूं, पर कवि दूसरे को मानता हूं । कुत्लौ को शुष्लजौ के प्रति हई मनोदशा देखकर मैने कहा--''जब आप मुझे इतना... तब झुक्लजी तो,... मे तो उनके चरणों तक ही पहुंचता हूं ।”' सुनकर वुल्ली बहुत ख॒श हुए, जसे स्वय शुक्लजी हो, बड़प्पन आ गया, स्नेह को दष्टि से देखते हुए बोले--“हाँ, करते को त्रिद्या है, जब आप गोने के साल आए थे, क्या थे ?” कहकर कुछ झेपे ।




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