आठ एकांकी | Aath Akanki

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Aath Akanki by सूर्यकांत - Suryakant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपक 8 यह चंपक | इसे भी अब दूर कर किसी दूसरे मीठे स्वर की खोज करूगा। ` [ गंभीर सुद्धा ¦ शक तला-[ विस्मय से | आप वास्तव में कवि टै रौर जीवन के महान्‌ कवि हैं । सालती-सचसुच । किशोर--में अपनी प्रशंसा नहीं सुनना चाहता। आप मेरे चंपक को लेंगी ? शकु तला---आपकी कहानी सेतो चंपक का मूल्य बहुत बद गया । श्रव तो सें अवश्य लेगी । किशोर-- गंभीर स्वर में जेसे पिछली बातों को नेत्रों से देख रहा ভী। ) कई ख़रीदने वाले आए, पर मैंने उन्हें न दिया, यद्यपि वे इसकी बड़ी ऊँची क़ीमत लगा रदे थे] मेने सोचा, किसी देसे व्यक्ति कोद, जो चंपक का मूल्य समके। आपके हृदय ने मेरे चपकको पहचाना हं । सुझे लाभ ही क्या होता, यदि ऊँची क़ीमत देकर वे लोग मेरे चंपक को दःख से रखते या उस प्रकार न रखते, जिस प्रकार में चाहता है । चंपक की संभवतः फिर पहले-जेसी दशा हो हो जाती । सुमे क्रीमत प्यारी नहीं हैं सुके अपनी चीज़ प्यारी है, वह भी बेची जाने वालः । श्राप मेरा आशय समम হী হই? शकु तला-| उत्साह से ] हँ, मैं श्रापके इयय को समम रही हूँ । दीजिए यह चंपक मुझे। [ मालती की ओर देखकर | मालती उठा ल्लो यह प्यारा चंपक । इसे हम लोग बहुत प्यार से रक्खगे । में कवि के समान तो शायद प्यार न कर सकूँ, पर... । [ मालती चंपक को उठाती है । | किशोर--नहीं, आप मेरे ही समान मुझे से अधिक प्यार कर सकेगी | आपके पास स्थत्री-हृदय है, जिसमें करुणा असत बनकर बहा करती है। शकु'तला--[ लज्जित होकर | धन्यवाद ? (चंपक को छूते हुए,




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