साक्षी है सौंदर्य प्राश्निक | Sakshi Hai Saundarya Prashnik
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
397
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ सनह ।
संभावना; यथार्थता और संभावना; सरल और जिस जटिल-मौउ-संरितेष्ट; भूत
तथा संरचना के ऐलिमेंटरी पार्टिकल, आदि-आदि | विज्ञान प्रकृति के पक्षों ( भी तिंक-
दास्त्र, रमायनशास्त्र, जीवशास्त्र आदि) का अनुसधान तथा रूपायन करता है । यह
यथाधंता का विश्लेपण करता है या फिर अनुभववादी है। कला-दर्शन 'यथार्धता की
्रद्ति' का अनुमान तथां सूपांतरण करता है । वह् बिदलेपणात्मक बुद्धि के बजाय
संदतिषणात्मक कल्पना पर ज्यादा वल देता है । अतः बह 'यथाधंता की पुनर्प स्तुति
करता है । विज्ञान में प्राक् कत्पना (हादपोयीसिस)की वरावरी की भूमिका होतीरैनो
रचनात्मक एवं संश्नेपणातमक् कल्पना से संवलित है । विज्ञान की स्वभावगत वस्तु
मिष्ठता है जो कला की स्वभावगत भात्मनिष्ठताके साय अंतविरोध रखती है । तथापि
यह भांतरिक अंतविरोध है क्योकि याज कला-दर्शन तथा विज्ञान-दर्ेन, दोनी ही रूपर्को,
अनुढतियो, संरचना, जवधारणामौ कौ गदत-बदल कर रटे है) जे° ब्रोनोषस्की ने
दोनों की सृजन-प्रफ्रियाओं के सारत्व का अवंगाहन किया है और यही पाणा करि दोनौं
ही 'रूपक' तथा “कल्पना की छलांगें लगती हैं ताकि सत्यानुभव या सत्यानुभति
का युगल प्राप्त हो । दोनों का सरोकार मनव-गरिमा तथा मानव-प्रगतिमे है 1
हमारे इस प्रंथ का प्रसथान-कलश भी यही है कि हमने कला-साहित्य को
वैज्ञानिक एवं इहलौकिक भाकृतिवंध दिया है । हमने अपनी आलोचनात्मक भाषा को
संवेगीय श्लुवांत से छुड़ाकर, उसे तर्कणा तथा अम्युदेश्य के मानक पर अंकित करके,
(आलोचना कौ श्राविधिक भाषाः की धारणा विकसित की है । हमारी सिद्धि यह हो
सकती है कि हमने विश्व के आध्यात्मिक दृष्टिकोण की दरार को बताया है । इस
दुष्टिकीण ने कला और श्रम की दासुता, लौकिक अनुभव तथा सींदर्यानुभव की शत्रुता,
आनंद और आतंक का केवल संधर्प, यही सन उभारा है । फलतः एक और सौंदर्य की
निस्संगता का सिद्धांत, सामाजिक की. निर्वेयक्तिकता (स्वपरान्यसंबंधमुक्ति) »
सौंदर्यवोधानुभव में निध्क्रियता (समाधि), प्रतिवद्धताविहीनता (सहुर्दपत्व ) ,
कारणताविरोध (चमत्कार) आदि ही शताब्दियों तक परिव्याप्त रहे तो दूसरी ओर
बाद में कला-साहित्य के अनुभव की घुरी केवल सुख॒ (प्तेज़र) अथवा आनंद
” (दिलिस) बनी । हम इस देतवाद (ड्यूएलिज्म) तथा अध्यात्मवाद (मेटाफिजिक्स )
कै दार्शनिक, सामाजिक, व्यावहारिक तथा सॉस्क्तिक विरोधी हैं ।
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अपने अध्ययन और अस्वेपण के लिए हमने दो प्राचीन, तदपि एक कुटूब वाले,
नुकुलो को लिया है--आायें तथा ग्रीक । उनके आदिम मानस से लेकर आधुनिक ज्ञान
तक का ऐतिहासिक संइलेप, खोजा है । उनके इतिहासों के बहुविघ (कलाटमक,
साहित्यिक, सामाजिक, आधिक, राजनीतिक, वंञ्ञानिक आदि) अंतरण ही आधुनिकी-
करण तथा आधुनिकताबोध की अनिवायंता तक ले आए है जहां एक भर वर्गे-
संपर्ष तथा भत्मनिर्वासन है तो दूसरी ओर आधुनिक नास्रदी और क्रांति भी हैं जो
१. दे 'साइस एंड हासन वेत्य ्', पैर्विन वुक्स, लंदन, १६६४}
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