हिन्दी प्रयोग | Hindi Prayog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ शब्दो के प्रकार “विदेशी” नहीं कह सकते कि ये हमारे ही देश के दूसरे प्रान्तों क शब्द्‌ है । इस्पी छिए उपर हमने इस वर्ग के शब्दो को (परकीयः का हे । शब्दों के सम्बन्ध मे ध्यान रखने की कुछ और बातें भी है, जो उनके र्थो से सम्बन्ध रखती है । पहली वात तो यह है कि सभी भाषाओ में वहुत-से ऐसे शब्द रहते हैं, जिनके के कई अथे होते हे । एेसे शब्द जब तत्सम रूप सें लिये जाते है, तब यह आवश्यक नहीं होता कि उनके सव अथै मी ययि दी जायें । कभी तो हम उनके सब अथे छे छेते हैं और कभी एक दी दो अथे ठेते है । तसम शब्द में कुछ एेसे भी होते है जिनका अथे, ठग या वचन दूसरी भाषा में जाने पर वदट जाता है । कभी कभी एेसे शब्दौ के साथ कुछ नये अथं भी जुड़ जाते हैं । दूसरी वात यह है कि तद्धव शब्दों के छिए यह आवइयक नहीं है कि उनके वदी अथं रँ जो उनके मूर शब्दों के हों । हमारे यहाँ का कंगार शब्द सं ° कङ्कार से निका है, जिसका अथं है दड्ियों का ढॉँचा या ठठरी । “ठठरी” के किए तो हम कङ्कार शब्द्‌ का प्रयोग करते हैं; पर कंगाठ का अथे ठठरी नहीं होता, बल्कि “बहुत दरिः होता दै । अग्नि और “आत्मा” सं० से पुंखिग है, पर हिन्दी में स्त्री- लिंग माने जाते हैं । तदूव शब्दों में हम अपनी छावइयकता के अल्लु- सार कुछ ओर अथं मी वदा ठेते है । 'काटनाः शब्द्‌ सं० कत्तेन से निकला दै 1 पर 'काटनाः हमारे यदो जितने अर्थो म चलता दहै, वे सव अथे क्तेन के नहीं है । काटनाः का पहला अथं है- किसी चीज को बीच से इस तरह्‌ अरग कर देना कि उसका कुछ भाग उसमें से निकर जाय । पर जव दूसरे अवसरो पर भी ह्मे इससे मिर्ता-जुरुता भाव प्रकट करना होता हे, तब भी हस काटनाः का प्रयोग करते हैं। हम जल से तो स्नान करते ही हैं, पर वायु, धूप और वाष्प का भी स्नान होता दे ; और चन्द्रमा की चॉदनी में प्रथ्वी कां भी स्नान




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