निबंध - निचय | Nibandh - Nichay

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Nibandh - Nichay by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ निबध-निचय दुश्मन से बचाने उयाले, उन बिन हाय नेई कोई जी ।”” ( आवू हुसैन ) यहद तो हुआ पद्य । अब ज़रा गद्य की भी चाशनी देख लीजिए । सरकस के विज्ञापनों में बह लिखते हैं--“'नामजादा पालवान घोड़ा का पीठ में नइ-नई तमाशा और खेल दिखाएँगे इत्यादि ।” वह शुद्ध हिंदी लिखते है था अशुद्ध, यह दिखाने का मेरा उदेश्य यद्य नदीं है । मेरा कहना केवल यही है कि वे हिंदी लिखते हैं; और हिंदी का उनमें प्रचार है । अशुद्ध ही सही, लेकिन लिखते तो हैं। भगवान्‌ चाहेगा; तो पीछे शुद्ध भी लिखने लगेंगे । यहाँ एक प्रश्न यह उठता हे कि बंगाली लोग अपनी पुस्तकों मे पंजाबी, गुजराती, तेलग्‌ श्रादि माषाश्नों को स्थान न देकर हिंदी को ही क्यों देते है! इसका कारण यह है कि हिंदी सरल भाषा है । इसे अनायास सीखकर लोग छापना काम निकाल लेते हैं; और भाषाश्च मे यह बात नदीं है । इसके सिवा इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वे हिंदी को ही शायद राष्ट्रभाषा होने के योग्य समभते हैं ; क्योकि अधिकांश भारतवासी ऐसा ही समभकते हैं; छोर उसके लिये चेष्टा भी कर रहे हैं । प्रत्येक प्रांत के विद्वान्‌ इसकी उपयोगिता स्वीकार कर चुके 'ोर कर रहे हैं । इंसबी सन्‌ १६०६ में बड़ोदे में हिंदी-परिषदू हुई थी । उसमें भी सबने एक स्वर से हिंदी को दी राष्ट्रभाषा




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