निबंध - निचय | Nibandh - Nichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ निबध-निचय
दुश्मन से बचाने उयाले,
उन बिन हाय नेई कोई जी ।””
( आवू हुसैन )
यहद तो हुआ पद्य । अब ज़रा गद्य की भी चाशनी देख
लीजिए । सरकस के विज्ञापनों में बह लिखते हैं--“'नामजादा
पालवान घोड़ा का पीठ में नइ-नई तमाशा और खेल दिखाएँगे
इत्यादि ।” वह शुद्ध हिंदी लिखते है था अशुद्ध, यह दिखाने
का मेरा उदेश्य यद्य नदीं है । मेरा कहना केवल यही है कि वे
हिंदी लिखते हैं; और हिंदी का उनमें प्रचार है । अशुद्ध ही
सही, लेकिन लिखते तो हैं। भगवान् चाहेगा; तो पीछे शुद्ध
भी लिखने लगेंगे । यहाँ एक प्रश्न यह उठता हे कि बंगाली
लोग अपनी पुस्तकों मे पंजाबी, गुजराती, तेलग् श्रादि माषाश्नों
को स्थान न देकर हिंदी को ही क्यों देते है! इसका कारण
यह है कि हिंदी सरल भाषा है । इसे अनायास सीखकर लोग
छापना काम निकाल लेते हैं; और भाषाश्च मे यह बात नदीं
है । इसके सिवा इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वे
हिंदी को ही शायद राष्ट्रभाषा होने के योग्य समभते हैं ;
क्योकि अधिकांश भारतवासी ऐसा ही समभकते हैं; छोर उसके
लिये चेष्टा भी कर रहे हैं ।
प्रत्येक प्रांत के विद्वान् इसकी उपयोगिता स्वीकार कर चुके
'ोर कर रहे हैं । इंसबी सन् १६०६ में बड़ोदे में हिंदी-परिषदू
हुई थी । उसमें भी सबने एक स्वर से हिंदी को दी राष्ट्रभाषा
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