क्वारे सपने | Kware Sapane
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
'समका' हरिनाथ ने भू कला कर कहा--चूल्हे पर चढ़ी रहना
श्र वहीं से ५००१००८ ग
'हाँ-हाँ--' सूँधे कंठ से श्री बोलने ही वाली थी कि धुयें के एक
ही हमले से चुप होगई श्रौर तभी दिव्या उत्तर ्राई, हरिनाथ ने झ्राते
ही कहा--वाह, दिव्या बेटी पास श्रौर हम विरान ! बेटी जरा
तौलिया तो ढूंढ दो ! '
'लीजिये-- हरिनाथ के कंँधे से तौलिया उठा कर दिव्या ने
थमत हुये कहा, वस बाबू जी ¦ गृसल खाने में पानी रक्ला है ~ तेल
भी हैं श्रौर साबुन भी ।'
'शाबास--दिव्या बेटी नहीं बेटा है । बेटा नहीं वरदान है । ठीक
दिव्या ने प्रतिरोध किया, सो तो नहीं मानती बाबू जी। झाप
कह रहे हैं तो ऐसा ही होगा -- मगर बातों ही से तो पेट नहीं भरता ।
कभी झाफत ठहराते हैं, कभी वरदान । क्या अझ्छेत वरदान ले पाये
है और हम श्रछत नहीं हैं तो हैं क्या । श्रापने कभी रप्ोई खाई हमारे
हाथ की ।
“ग्रोह हो-- हरिनाथ ने बात बदल कर कहा--दिव्या बेटी--
राज जानेसे पहले पाँच रुपये ले लेना, समभकी । फिर दो क्षण के
अस्तराल के बाद पादोके रोर से घबरा कर-बोलेः यह् श्रब क्या लगता
है तारा पाँडें फिर आर गया है । देखता हूं जाकर--'
पाच मिनट बाद ही वहु लौटकर श्राये श्र दिव्या को बुला कर
बोले--' देख तो दिव्या--दो सौ रुपये रक्खे होंगे सन्दूक में । दे दें तो
तारा पाँडे से पिंड छूटे । कम्बख्त तब श्राया जब दुलंभ ही नहीं । श्रौर
रौब तो देखो पुलिस लाया है, झदालत लाया है । कुर्की लाया है ।'
रसोई में बेंठो श्री से पुकारा --'क्यों जी--वह रुपये खच् तो करे.
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