तुलसी के चार दल | Tulsi Ke Char Dal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रोस्वासी तुलसीदास का जीवन-दृत्त ट
सीराबाई के पद के संबंध सें सी इसी प्रकार की ऐतिहासिक
समीक्षा की गई है । मीरावाई का कथित पद् शरैर मोस्वासीजी करा
कथित उत्तर किसी भी पुस्तक मे सिह सकता है। 'संकिप्त यूल
गासाड'चरितः सं इस घटना को साना है । परंतु संब्तों में जब तक
कोई लया हेर-फेर त रागा तब तक इतिहासकार इस घटना को
स्वीकार न करेंगे । पं० रामचंद्र शुकु इस घटना को ते ठीक तहं आनते
परंतु अन्यत्र अन्य उक्तियों के साघ गोस्वामीजी के सीरा को दिए हुए
उत्तर को भी उद्धृत करके उल्क समाज-्रादशं की समीक्षा करते हैं ।
गोस्वासीजी सी चार कृतियों की रचना-काल-सं॑धौ अलोचन
इम पुम्तक सें अन्यत्र की गई है। अन्य रचनाओं के रचना-झाल
की समीक्षा का यह स्थल नही रै! “'कष्ण-गीतावली” और “रास-
गीतावली' की रचना का प्रोत्साहन, “संक्षिप्त सूल गासाइई'चरित' के
अघुसार, दे बालकों के कारण हुआ ।. वे प्रतिदिन पढ़ें को कँठ
करके सुनाया करते थे |
स्मपने प्ैटन-काल से गेष्वासी तुलसीदास ने अवधपुरी पहुँचकर
रासचरितसानस लिखने का विचार किया । रामचंद्रजी फे जन्म
दिन का ठीक योग संवत् १६३१ सें पड़ा। इसी दिन मोस्वामीजी
ते रामायण ज्रम कर दी । यह संवत् 'सानसः में दिया हुआ है ।
अ्रलुमान यह किया जाता है कि श्ररण्यकांड के लिखने तक
गोस्वासीजी अयोध्या यें रहे झ्रोर बाद में काशी चलने गए |
विष्किंधाकांड का आरंभ काशी में ही हुआ । किष्किंधाकांड के
प्रारभे काशी का वर्णन मिलतारै। प्रय कौ समाप्ति-तिथि
का उरलेख संकछिप्त मूल गोसाई चरितः में है; कितु गणना की
समीक्षा में वह ठोक नहीं उतरती ।
इस स्थान पर हमें गोस्वामीजी के अन्य परयो की समीत्ता नही
` करनी है। अतएव 'सानसः के संवंघ में भी ङु न कहकर हम
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