मनोविज्ञान चिन्तामणि | Manovigyan Chintamani
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.72 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कौमबीसन। को नियंत्रणों श्श
का करने से मनुष्य में आाशाबादिता बढती है और जैसे-जैसे उत्तमें श्रानन्द की
बंध होती है, वैसे-वैंसे «उसमे नाप्मनिवंतण की शक्ति भी श्राती है]
३ में एक कदवत प्रचलित है कि “बैठे से बेगार मली” । कामवालना के
निरयनणु करने में अपने श्रापकों किसी: ने दिशी काम में लगाए, रखना जितना
विश्यक है, उतना श्र किसी दृष्टि से नदीं | साली मन शैतान का निवासस्यान
होता है । अतएव जत्र मतुष्य श्रपने झापको किसी ऐसे कार्य में लगाता है,
जिनसे उत्तका श्रौर दूसरों का भी त।भ दो, तो उसे वे विचार नास नहीं देते, जो
उसे नीचे की आर गिसते हैं [. किसी भी आआनन्ददायी उपयोगी काम में श्रपने
आपको लगाए. रखना कामवासना पर विजय प्राप्ति का स्वोत्कष्ट उपाय हे ।
कमिवोसना के नियंत्रण में सफलता सम्पूर्ण बीवन में सफणता प्राप्ति
का एक श्रंग है | बीवन की सफलता के लिए यद आवश्यक है कि मनुष्य का
संसार के विभिन अ्यशियों के प्रति श्रौर पूरी खष्टि के प्रति उचित इृष्टिकोश हो !
बिल व्यक्ति का जीवन-दुशन डॉवाडोल रददता है, बिसकी मनोइति सदा ' संशया-
प्मक रहती दै, बट अपने झाप पर नियंनण प्राप्त करने में समथ नहीं होता ।
उतकों आत्मनियंत्र्य दिखोवा मान दोता है। मनुष्य का मन किली स्थिर तत्व
को प्राप्त कर ही अडिग रद सकता है | जित व्यक्ति को किसी स्थिर तत्व के
अस्तित् में विश्वात दी नहीं है, ब६ मन को भौतिक सुखों के अतिरिक्त और
क्यो देकर समझा सकता है? ऐसे व्यक्ति का मन सदा बढ़िभुखी होता है ।
नदिशुसती व्यक्ति में न तो स्यायी श्रात्म-विश्वाल रदता है शरीर न उतमें अपनी
प्रबल चालनाशओं पर नियनण रखने की शक्ति होती है | द
तत्व-दर्शन मचुष्य को झपने जीवन के विषय में एक नया प्रकाश देता है
और नये प्रकार के आनन्द के लोत का ज्न्वेशस करता है। किसी प्रकार की
ऐस्द्रिक सुस्त की लिप्सा «1 पेवेज्ञानिक बचपन है। इस बचपन से नही मुबण हो
सकता है जो सदा श्रपने अपको शान विद्यान में लगाए, रखता है श्रौर जो तत्न
, के वास्तविक रूप को बोनने की चेष्टा करता है । सत्य की और अरगतिशील व्यक्ति
में अनायास ही शपने श्रापकों नियंत्र्थ में रखने की शक्ति शा जाती है । जत्र
पालुष्य का दार्शनिक विचार आात्म-निर्देश धारा उसके झन्तमंन में चला जाता है
तभी मनुष्य में विषयवालना पर निर्यनण करने की शक्ति आती है । प्रत्येक व्यक्ति
को न केवल अपने वाह्ामन को सुशिक्षित लनाना है. चर्च, उसे झपने ऋपुन्तरिक
मन को भी सुशिस्तित बनाना है | तभी व कामवालना पर निर्यनण अआप्त कर
सकते है |
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