मेरे जीवन में गांधीजी | Mere Jeevan Mein Gandhi Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बापू १३ दक्षिणायन-उत्तरायण के कारण होती है, न ठि दक्षिणायन-उत्तरायण मर्दी-गर्मी के कारण । गांधीजी की दलीले भी बसी ही हैं। वे निणेय के कारण वनती है. न कि निर्णय उनके कारण वनता है । आधिररी तुलना कितनी मनोहर, कितनी मौलिक और कितनी अयेपूर्ण है ! गांधीजी के जीवन के कई कार्यों पर इस दृष्टि से कितना प्रकाश पड़ता है। _ गांधीजी की आत्मकथा तो हम सब पढ़ चुके हैं, परस्तु उसके कुछ भागों पर श्री घनश्यामदासजी ने जैसा भाप्य किया है वसा हमम से शायद ही बोई ररसे हों । गांधीजी को मारने के लिए दक्षिण अफ्रीका में गोरे लोगों की भीड़ टूट पड़ती है। मुश्कित्त से गांधीजी उमसे बचते हैं ! विढलाजी को उस दृश्य या विचार करते ही दिल्‍ली के लश्मीनारायण-मर्दिर के उद्घाटन के समय की भीड़ पादमा मती है और दौनों दृश्यों का सुन्दर समन्वय करके अपनी वात का समर्थन फरते है। गाधीजी के उपवास, उनकी ईरवर-श्रद्धा, उसके सत्याग्रह आदि कई प्रश्नों पर सनके जीवन के अनेक प्रसग लेकर उसकी गहरी छानवीन करके, उन्होने षडा सुन्दर प्रकाश डाला है । उनकी समझ, उनकी दृष्टि, इतनी सच्ची है कि कही-कही उनका स्पष्टीकरण गांधीजी के श्पप्टीकरण की याद दिलाता है। यह पुस्तक तो लिखी गई थीं कोई तीन महीने पहले, लेकिन उस समय उन्होने सिक सेनापति मौर घदिसिक सेना के बारे में जोन्कुछ लिखा था वह मानों बसा ही है, जैसा अभी कुछ दिन पहले गाधीजी ने 'हरिजन' में लिखा था : “ह्‌ आशा नहीं की जाती कि समाज का हर मनुष्य पूर्ण अहिसक होगा । पर जहां हिसक फौज के बस पर शाति और साम्राज्य की नींव डाली जाती है, बह्ढा भी यह आशा नहीं की जाती कि हर मनुष्य युद्ध-कला में निषुण होगा ! करोड़ों की वस्ती वाले मुल्क की रक्षा के लिए कुछ थोड़े लाख मनुष्य काफी समझे जाति हैं। सी में एक मनुष्य यदि सिपाही हो तो पर्याप्त माना जाता है 1 फिर उन सिंपा- हियों में से भी जो ऊपरी गणनायक होते हैं, उन्ही की निषुणता पर सारा व्यवहार चलता है। “आज इंग्लिस्तान में कितने निपुण गणनायक होगे, जी फौज के संचालन में अत्यंत दक्ष माने जाते हैं ? शायद दस-बीस । पर बाकी जो लाखो की फौज है, उससे तो इतनी ही आशा की जाती है कि उसमे अपने अफसरों की आज्ञा पर मरने की शक्ति हो। इसी उदाहरण के आधार पर हम एक अहिसक फौज की भी कल्पना कर सकते हैं। अहिसात्मक फोज के जो गणनायक हों, उनमे पूर्ण आत्म- शुद्धि हो, जो अनुयायी हो, वे धद्धालु हों और चाहे उनमे इतना सी&ण विवेक ने 4 पर उनमें सत्य-अहिसा के लिए मरने की शक्ति हो । इतना यदि है तो काफी ४ 2




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