मेघदूत - एक पुरानी कहानी | Meghdoot Ek Purani Kahani

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Meghdoot Ek Purani Kahani by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पक पुरानी कहानी १३ युक्ति काम नही करनी । फिर भी दिनमे उसे कुछ-न-ऊछ सहारा मिल जाता था | हरिणीके नयनोमे, वृक्षोके अरुण किसल्योमे, पद्मके वेघक कोरकोमे, प्रियगु छताकी झूमती वल्लरीमे प्रियाके किसी-न-किसी अगका साम्य मिल ही जाता था । यद्यपि उसे इस बातका वडा दुःख था कि उसे एक ही जगह सत्र अंगोका साम्य नहीं मिल पाता । लेकिन जब भाग्य खोटा हो, तो इतना तो सहना ही पडता हे} सन्ध्या समय जव धीरे-धीरे अन्धकार धरती-तट्पर उतरने लगता और सब-कुछपर घने काले अजनको पोत देता, तो यह सहारा भी जाता रहता । निश्चय ही उस समय उसका मन सबसे अधिक उद्क्तिप्त होता होगा । मतवाले काले हाथी-जैसा ढिखने- वाला मेघ निश्चय ही सायकाल दिखा होगा । कालिदिसने कुछ सोचकर ही ये सब बाते नहीं बताईं । वे चाहते, तो सन्ध्याका ऐसा मनोरम चित्र खींच देते किं वस, पढते दी बनता । पर उन्होने इस पचड़को छोड दिया । जो छट गया, उसे छटा ही रहने दिया जाय | र्‌ स्वागत-बचन बोलनेके वाद यक्ष सोचने लगा कि क्या उपाय करूँ कि यह मेध ग्रसनन होकर मेत काम कर दे । कुछ ऐसा कहना चाहिए, जिससे पहले ही वाक्यम यह सन्तुष्ट हयो जाय । कहीं ऐसा नहो कि प्रथम वाक्यसे दी नाराज हो जाय] जिससे काम लेना हो. उसकी थोडी ख़ुशामद तो करनी ही चाहिए । प्रिय सत्यके वोल्नेका आदेग तो चाकने भी दे रखा है । सबसे वड़ी खुशामद




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