खलजी कालीन भारत | Khaljii Kaaliin Bhaarat

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मुहम्मद हबीब - Muhammad Habib

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सैयद अतहर अब्बास रिज़वी - Saiyad Athar Abbas Rizvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ट ) तुहफतुन्नुज्जार फी गरराइनिल श्रमसार व श्रजाइबुल श्रसफ़ार रखा गया ।* वह ख़लजी वंश के समाप्त हो जाने के १३ वषं पश्चात भारत में प्राया किन्तु उस समय तक खलजी काल की स्मृति ताजा थी । श्रनेक एसे व्यक्ति भी वतमान थे जिन्हें खलजी काल के सम्बन्ध में बहुत श्रच्छा ज्ञान था 1 इञ्ने बतूता भारतीय समाज के प्रत्येकं तगं से मिला । उसने जो कु लिखा भारतवर्ष के बाहर लिखा ग्रतः उसे यहाँ के सूत्तानों का कोई भय नथा। यद्यपि पुस्तक की रचना के समय उसके सृक्ष्मोत्लेख भ्रादि नष्ट हौ चके थे श्रौर फारसी न जानने के कारण वह यहाँ की बहूत सी बाते समभ़भीन सकाथा फिर भी उस समयके समाज सदेति तथा इतिहास के संबन्ध में उसने जो कुछ लिखा है वह बड़े काम का है । बाद के इतिहासकारों में यहया बिन श्रहमद बिन श्रब्दुल्लाह सर हिन्दी की तारीखे मुबारक शाही को बड़ा महत्व प्राप्त है। यहया ने ८३८ हि० (१४३४ ई०) तक का हाल लिखा है । उसने अपनी पुस्तक सेयद सुल्तान मुईज्जुद्दीन ग्रबुलफतह मुबारक दाह बिन फरीदशाह को समर्पित की है। तृगलक्र वंश के ग्न्त से लेकर सैयद वंश तक के इतिहास के लिये यह पुस्तक भ्रमूल्य श्रौर गुलाम तथा खलजी वंश के लिये श्रत्यन्त महत्वपुरणां है । श्रनेक ऐसे ग्रन्थ जिन पर यह्‌ इतिहास आधारित है, श्रप्राप्य हो गये हैं । इसके श्रतिरिक्त यहया की विवेचन शक्ति बडी विलक्षण थी । खलजी वंश के इतिहास मे उसने श्रपनी इस श्रद्भुत विवेचन शक्ति का प्रदर्शन किया है । मुहम्मद क़ासिम हिन्दू शाह श्रस्तराबादी जो फरिश्ता के नाम से प्रसिद्ध है सोलहवीं शताब्दी ईसवी का बड़ा ही विख्यात इतिहासकार है । उसने श्रपने 'गुलदने इब्राहीमी' ( जो तारीखे फरिश्ता के नाम से भी प्रसिद्ध है ) की रचना १०१४५ हि० (१६०६-७ ई०) में समाप्त की । उसने भी भ्रनेक ऐसे ग्रन्थों का उपयोग किया है जो काल-कोप से श्रब श्रप्राप्य हो गये हैं । उसने उन इतिहासों के नाम भी लिखे हैं । यद्यपि उसके इतिहास में विवेचनात्मक निरय की कमी है श्रौर उसने उपलन्ध सामग्री का सावधानी से प्रयोग किये बिना जनश्रूतियों को भी स्वीकार कर लिया है तो भी तारीखे फरिद्ता बडा ही श्रमुल्य संग्रह है । सोलहवी शताब्दी ईसवी का एक श्रन्य इतिहासकार, जिसे गुजरात के विषय में विशेष ज्ञान था, श्रब्दुल्लाह मुहम्मद बिन उमर, श्रल श्रासफ़ी उलुग़ खानी था । उसने १६०४५ ई० में जफ़रुल वालेह की रचना प्ररबी में की । यह “गुजरात का श्ररबी इतिहास के नाम से प्रसिद्ध है । जफरुल वालेह भी गुजरात के भ्रनेक ऐसे इतिहासों पर श्राधारित है जिनका ज्ञान उत्तरी भारत के इतिहासकारों को बहुत कम था । इस कारण गुजरात के इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने में इस पुस्तक के बिना काम नहीं चल सकता । सम्भव है कि संकलन कर्ता द्वारा पुस्तक का कोई नाम नहीं रखा गा । महदी हुसेन ने इसका नाम रेदला रखा । 7९112, {8270032 1953) अनुवाद में केवल अजाइडुल असफार रखा गया है ।




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