शरत - साहित्य विजया | Sharat - Sahitya Vijaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० विजया [ प्रथम
~ ---.~ -~----~ - ~~ +~ ~ ------~ -~- ~~~“ -~~ ++ ^~ .~- ~+ ~ 1. धरिकनं क
न पा हा न ~ ~~~ ~ - ~
सुनकर एकाएक चचर हो उठा था कि भविष्यमें फिर ऐसा होनेसे तो काम
नहीं चलेगा। तब आत्मसम्मानकी रक्षाके लिए. मुझे अपनेको म्हारी जायदाद
और जमींदारीसे अलग करना ही होगा । .किन्तु विलसकी बातोंसे
मेरे मनकी खीझ जाती रही बेटी । समझ लिया, वे अज्ञानी है, करें पूजा ।
बल्कि परायेके लिए दुःख सहना ही महत्व है । इस विलासकी प्रकृति भी अद्भुत
है। इसके वचन और कामकी दृढ़ता देखकर कोई यह नहीं समझ पाता कि
इसका हृदय इतना कोमल रै । खर, इसे जाने दो । वदद जगदीशका मकान जब
तुमने समाज ( त्राह्म समाज ) को ही दान कर दिया है, तो अब देर न करके,
इन छुट्टीके दिनोंमें ही उसकी सच्च तेयारी पूरी कर डालनी होगी । तुम्हारी
कया राय है ?
विजया--आप जो अच्छा समझंगे, वही होगा । रुपए अदा करनेकी
उनकी मियाद तो खतम हो गईं दे ?
रास०--बहुत दिन हुए । शतं आठ सालकी थी; पर अब यह नर्व साल
बीत रहा है ।
विजया--सुनती हूँ , उनके पुत्र यदीं हैं । उन्हें बुलाकर और भी थोड़ी मुदत
देना क्या ठीक न होगा १ शायद कोई उपाय कर सक |
रास०--( सिर दिलाते हुए ) नहीं कर सकेगा--नहीं कर सकेगा--कर
सकता तो--
विलास०--अगर वह रुपयोंका कुछ इन्तजाम कर भी ले; तो हम क्यों
देंगे १ रुपए; लेते समय उस शराबीको होश न था कि क्या शर्त की है ? इसे
केसे अदा करूँगा ?
[ विजयाने विखाप्तविहारीकी ओर एक बार दृष्टिपात करके रासबिहारीके
मुखकी ओर देखते हुए शान्त, किन्तु टद् कण्ठसे कदा-- |
विजया-- वह बाबूजीके मित्र ये | उनके सम्बन्धमें वे सभ्मानके साथ बात
करनेकी आशा मुझे दे गये हैं !
विलस० --( गरजकर ) हजार आज्ञा देनेपर भी वह एक -
रास°-- आहा; चुप रहो न विलास | पापके प्रति तुम्हारी आन्तरिक धृणा
पापीके ऊपर न जा पढ़े, इसका खयाल रखो । इसी जगह तो आत्मसंयमका सबसे
अधिक प्रयोजन है मेया ।
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