नवीन गीत | Naveen Geet

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Naveen Geet by महेंद्र नाथ - Mahendra Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1न्ालारल्धोपतााणक एम कक मा नवीन गीत द र उर गट करना न सल्ला प्यार उर से ले प्रकट करना न सीखा पास से ही जा रहा रुकना न सीखा लाज से प्रावा दबी थे नेत्र सकुचे थे असंख्यक भाव पर कहना भन सीखा | वायु दोनों देह की गति से बही जो, ्रात्म-विस्छति की कणिक दुनिया मिली जो, दाथ को छूता हुआ अंचल उड़ा था, पर अभागों ने परस करना न सीखा | शीश का परिघान सरकाते हुये तुम, | जान कर अनजान से जाते हुये तम सिल गये पथ में विकल उर रो उठा था परुं ने सामने गिरना न. सीखा 1. सामि की नित गंध घन-वेसी दिवाकर फल-तारक, सत्र सिन्दूरी लगा कर नोल अखल को उठाता छिप रहा. क्या ८ प्रेम तमने देख भी करना न सीखा है गोर अंगी नील सारी मं ढंकी थी रेशमी सुस्कान अधरों पर सहाती, लाल जलधर को टँकँ ज्यों नील वारिद ऽ चला उन पर तनिक सी खेल जाती विश्व सारा पृष्टुता. उस प्रियतमा कों म्प्र का वसन कभी करना न सीखा 1! कर रही नीराजना जिसकी नियति है डाल कर नभ दीप मे स्वगग-बाती




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