साहित्यकार चित्रावली | Sahityakar Chitravali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खड़ी बोली को काव्म-भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले हरिश्रौव जो का उन्नायक-व्यक्तित्व श्रत्यन्त प्ररणारुपद था । झाप का जन्म सन १८६५ में उत्तर प्रदेश के श्राजमगढ़ जिले के निजामाबाद कस्बे में हुआ था । 1 शिक्षा का क्रम झधिक न चल सका । नामंल परीक्षा पास कर के श्राप ने निजामाबाद में श्रध्यापकी शुरू की, फिर वर्षों तक राजस्व विभाग में सदर कानूनगों के पद पर रहे । यहाँ से भ्रवकाश «. ग्रहण करने पर पं० मदनमोहन मालवीय के श्नात्रह पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में श्रवेतनिक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य किया । श्राप संस्कृत, फारसी श्रौर उर्दू के प्रकाण्ड पंडित थे । प्रारम्भ में भ्रापने नाटक तथा उपन्यास लिखे परन्तु शीघ्र ही काव्य-सूजन की श्रोर झाप की रूचि बढ़ी श्रौर थोड़े वर्षों के सृजन के बाद ही श्राप को खड़ी बोली का प्रथम महाकवि होने का श्रेय मिला । श्राप की प्रमुख रचनाएं है-- रुविभणी परिणय, ठेठ हिंदी का ठाठ, श्रचखिला फूल, रसिक-रहस्य, प्रेम प्रपच, प्रेम पृष्पहार, काव्योपवन, प्रियप्रवास, कर्मवीर, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे शरीर चेदेद्दी वनवास श्रादि । 'प्रियप्रवास' को हिन्दो साहित्य का महाकीव्य माना गया है । सन १६९४ में श्राप हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भ्रध्यक्ष हुए । सन १६४१ में छिहत्तर वर्ष की श्रायु में झाप का देहान्त होने से हिन्दी साहित्य ने भ्रत्यन्त श्राकपक व्यकित्तत्व भौर महाकवि खो दिया । ७ मो अयोध्यासिह ब उपाध्याय 'हरिऔध' द. () जन्म : सन १८६४ निधन : सन १४४१




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