प्रबंध सागर | Prabandh-sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्बन्व-सागर प्रध्याय १ हिन्दी-गद् का विकास 4, न्दी गथ का प्ररस्मिक विकाक्--वरतमान हिन्दी का जौ स्वरूप प्राज दिख. शाई दे रहा है उसके उद्गम श्रौर प्रारम्भिक भ्रवस्था फा ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त करना सरल काम नहीं । भाषा-बैजानिकों की' खोजों से ही' सांकेतिक रूप से इतना ज्ञान प्राप्त हो सका है कि १९वीं शताब्दी के आस-पास भ्राधुनिक खड़ी बोल-चाल की शाषा का प्रचलन भारत में प्रारम्भ हुमा होगा । यवन-श्राक्रमणों से एवं शौरसेनी, मागधी इत्यादि अपन 'श भाषाएँ विभिन्न प्रात्तों में बोल-वाल के लिए प्रचलित थी । मुसलमानों ॐ शासन॑-काल गैः उनकी भाषा यहाँ की भाषा से प्रभावित हुई श्र यहाँ की' भाषा को उनकी भाषा ह्वार अभावित होना भतिवायं हो गथा । राजा शिवश्रसाद ने कहा है; “संस्कृत की गौरव-गरिमा तो हिन्दू-साझ्राउ्य के भ्रस्त होनेके साथ ही लुप्त होने.सी लगी थी । भ्ररवी, तुरी श्रौर फारसी, जो मुसलमान शासकों की भाषा थी, मुसलमान एेनिफ श्रपमे साथ लाये थे, उनका सम्मिश्रण क्रमकः भारत की प्रान्तीय भाषाओं में हा । फारसी को राज-वरनार की भाषा बनाने का सौभाग्य मिलने स दस सम्मिश्वण में ध्रौर भी समुगमता हुई ।” विदेशी भाषाओं के ससगे से प्राधुनिक हिल्दौ की जन्म- दाची त्रज-मापा का भी काया-पलट हरा भर उसके रूप में भी परिवतंन स्पष्ट दिख- लाई पड़ने लगा । हिन्दी का 'हिल्दी' नामकरण मुसलमानों ने ही भेरठ-देहली के आस-पास फी योल-चाल की भाषा के भराधार पर कियाथा। हिन्दी भ्रथवा यह मिश्रित भाषा, जो भारतीय रौर भुसलमानी भाषार्भो के सम्मिश्रए से बनी, भ्रणनी परिपक्व भवस्था को १२बीं शताब्दी में पहुवी । भमीर खुसरो के हिंग्दी' खड्टी बॉली के कुछ उदाहरण उस काल की भाषा की व्यवस्थित रूप- रेखा के ज्वलन्त उदाहरण हैं :-- “चार महीने बहुत चले और महीने थोरी । मीर खुसरों थों कहें तू बता पहेली मोरी >९ व्णोरी सोने सेज दै, सुख ये डारे केले । बल खुलरों घर आपने रैन भड़ चहुँ देख ॥*




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