चरिका | Charika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Charika by शांति प्रिय द्विवेदी - Shanti Priya Dwiwedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शांति प्रिय द्विवेदी - Shanti Priya Dwiwedi

Add Infomation AboutShanti Priya Dwiwedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द चारिका विकारो का कारण ज्ञाते हुआ तब उनके निराकरण (जुद्धीकरण) का भी परज्ञान हो गया 1 मुझे अनुभव हुआ-पूणं वेराग्य से अविद्या (माया) का निरोध करने पर सस्कारोका निरोध होता है, सस्कारो के निरोध से विज्ञान का निरोध होता है, विज्ञान के निरोध से नाम- रूप का निरोध होता है, नाम-रूप के निरोध से पडायतन का निरोध, षडायतन के निरोध से विषय का निरोध, विषयकेनिरोधसे वेदना का निरोधःवेदना के निरोध से तृष्णा का निरोध, तृष्णा के निरोध से उपादानं का निरोध, उपादान के निरोधसे भव का निरोध, भवके निरोध मे जन्म का निरोध, जन्म के निरोध से जरा-मरण-शोक-परिवेदन-द ख, दौर्मनस्य, उपायास का निरोध होता है। भिक्षओ । कार्य्य-कारण की परम्पराके अनुसार चित्तशुद्धि ओर आत्म॑शान्ति किवा लोकञ्ञान्ति के लिए यही चेतना-प्रसूत विरवसनीय उपलब्धि मेरा श्रतीत्य समुत्पाद' है । इस वक्तव्य से भिक्षुओ की आँखे खुलने लगी । परिव्राजक के प्रति अब उनमे दुराव नही, श्रद्धा का उद्देक हुआ । उन्होंने निवेदन किया--भन्ते! आपने कहा, जँसे देह-शुद्धि के लिए नियम-सयम है, बसे ही मन.शुद्धि के लिए भी नियम-सयम है । कृपया, सन शुद्धि के नियम-सयम का स्वरूपं निर्दिष्ट कीजिये । परिव्राजक ने कहा----अवृसो । इन दो अन्तो ( अत्तियो ) से ्रत्रजितो को बचना चाहिये-(१) कामवासना और (२) काय- कलेर (देहदण्डन) ! इन दोनो से क्च कर मव्यमगं (मध्यमा प्रति- पदा) का अवलम्बनं करना चाहिये । स्पष्टीकरण के लिए परिन्राजक ने चार 'आय्यंसत्य' और आध्यं अष्टङ्किक मागं का विवेचन किया । इस तरह उसने उन भिक्षुओं १. जा्य॑सत्य--दुःख, दु ल-समुदय, दुःखनिरोध, तथा दुःख-निरोध की ओर से जाने वाला मागं ¦ २. अ्टाङ्किक मागं---आाठ अङ्को वाला मागं, आठ्अङ्ग ये है-सम्यक्‌ दृष्टि, सम्यक्‌ संकल्प, सम्यक्‌ वाणी, सम्यक्‌ कर्म्मान्त,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now