युग और साहित्य | Yug Or Sahitya

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Yug Or Sahitya by शांति प्रिय द्विवेदी - Shanti Priya Dwiwedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नख-विन्दु डसकी दृष्टि न पड़ने पावे) परन्तु जागृति एकांगिनी नहीं होती, बह धीरे धीरे सर्वोंगीण है। जाती है। आज हम देखते हैँ किन केवल सासाजिक बल्कि अन्तरोष्ट्रीय राजनीतिक जागृति भी हमारे देश में व्याप्त हो गई है। ऐसे समय में जे सास्प्रदायिक विद्वंष -चल रहे है उनके हारा शासकें की उस शुभेच्छा का भी पदीफाश है गया है ज सामाजिक या धार्मिक स्वतन्त्रता के रूप से प्रदर्शित की गई थी) जगे हुए आदमी के अन्धड़ और तूफान भी देखने पड़ते है, उसे इन सबसे अपनो दृष्टि को स्वच्छ रखकर प्रगति के पथ पर गतिशील होना पड़ता है। अन्धाघुन्ध चलते रहना दी प्रगति नहीं है। आज हमांरी जागृति देश के ग्रीष्मकाल ( संतप्त काल ) की जागृति है, यह एक प्रज्वलित सौमाग्य है, ठंडे मिज्ञाज से हो हम इसका सदुपयोग कर सकते है। ऑधी ओर तूफान में स्थितप्रज्ञ होकर ही हम ठीक राह पर चल सकते है, अन्यथा गुमराह हो जाने को अधिक आशंका है। मध्ययुग के अनेक दूषणों से हम आज भी युद्ध कर रहे हैं। कहीं प्रगति को मोक से हम वत्तमान युग से भी इतने दूषण न ले ले कि प्रगति के जजाय हमे अपनो गन्द्गी से ही पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाय। समाज, साहित्य और राजनीति इन सब के बड़े सजग हृदय से नव-नि्मोण देना है, तनिक-सी भूल इसमें सदियों पोछे डकेल सकती है। हमे याद रखना चाहिए कि आज विश्व के ५




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