सांस्कृतिक निबन्ध | Sanskritik Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्ग्वेदके रोम ण्टिक ऋषि १७
“मुझे समीप आनेकी अनुमति दे । मुज्ञ अवलापर प्रसन्न हो ! मैं
मदा रोमया रहेंगी, गन्वारके मेमनोकी भाति सर्वदा रोमशा, विनीता 1'
( वही, ७ )
पीछे कक्षीवानूने एक और विवाह किया । वह घोपा थी, राजदुहिता
( १०,४०,५ ), और स्वाभाविक ही पतिका उसका भादर्ग “अनेक अब्वोका
स्वामी धनी रथी” राजन्य था । पर जमाग्यवद त्वचा रोगसे गाक्रान्त
हो जानेके कारण उसकी कामना पूरी न हो सकी और दीर्घकाल तक वह
अविवाहिता ही रही । पिताके गृहमें ही उसके केश व्वेत हो चले । फिर
अध्विनोकी स्तुतिके फलस्वस्प उसे कक्षीवानू-ना वर मिला । कक्षीवानूने
उसे स्वय वृद्धावस्वामे व्याहा था गौर इस प्रकार समानने समानको वरा ।
घोपाका नाम कऋग्वेदमें अनेक वार आया ह) { १,११७.७,१०,३६
आदि ) साथ ही सहिताके दसवें मण्डलके दो समूचे सूक्त, ३९ गौर ४०
उसी नारी ऋषिकी कृतियाँ है ।
महर्पि कक्षीवानूको वृद्धावस्थामें विवाह करनेका तिक्तफल मी च्यव-
नादिकी भाँति भोगना पडा । स्पष्ट पता तो नहीं चलता कि वृद्धावस्थाके
कारण स्वय वे क्लीव हो गयें थे या उनकी पत्नी ही बन्ब्या थी, परन्तु वे
सन्ततिके चिए स्वय भी ( १०,३९,७ ) घोपाकी ही भाँति (१,११७,२४)
जल्विनीकुमारोकी स्तुति करते हं! कटते हे, “तुम दोनो क्छोवकी पत्नौ
( वध्रिमत्या ) कौ स्तुति सुन उसके पाम चले भये थे और सुखी पत्नीकों
सुन्दर सन्तति प्रदान की थी1'' उसी प्रकार घोषा भी कहती ह, “वीरो,
तुमने असीम उदारतापूर्वक कटीवकी पत्नीको हिरण्यहस्त नामका पुत्र
प्रदान किया था ।”” उनका तात्पर्य अपने लिए सन्तान मगिनेसे है।
अश्विनीकुमार दिव्य वैद्य हैं जो अचूक ओौपवियोका वितरण करते है
यौर ऋऋग्वेदमें क्लीवो भमौर वन्व्याओंके विज्ेप आराव्य है ।
विमद मी ऋग्वेदका ब्राह्मण ऋषि ह । उसने कम्य अथवा गुच्न्युको
५, = अ, = शण
व्याहा 1 वस्तुत दोनोमें परम्परया विवाह नहीं हुआ । दोनो प्रणय-निर्वाह-
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