क्या भारत सभ्य है ? | Kya Bharat Sabhya Hai ?

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अरविन्द घोष - Arvind Ghosh

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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ क्या भारत सभ्य है ? रहा है। युरोपकी भी जो सध्यकालीन संस्कृति थी, उसपर ण्शियासे पेदा हुए इसाई आददका प्रभाव था ; इससे सिद्ध होता हे कि श्राप्यात्मिक लक्ष्य दी प्राघान्य प्राप्त कर सका था एवं उस समय एरियाकी संस्कृतिके साथ यूरोपकी संस्कृतिका यथा- थतः एक तरसे साश्य हो गया था, कुछ अंशोमिं वेषम्यभी अवश्य था । संस्कृतिके विषयमें प्रकृतिगत भेद दोनों में सदा- सवदासे रहा है । गत कई शताब्दसे यूरोप जङ़्वादी, अक्रमण- शील दो रददा है. एवं मनुष्यके भीतर श्रौर बाहरको खभ्यताके असली अथं, सत्य श्र सद्ज्ञानसे यूरोप हाथ धो बैठा हे । विषयकी स्वच्छन्दता, विषयकों उन्नति, विषयकी काये-दृक्तता श्रादिको यूरोपने अपना उपास्य देवता बना लिया है । जो 'गाघुनिक यूरोपीय सभ्यता एशियामें श्रा बिराजी है, एवं भार- तीय अआदशेपर तीतर श्राक्रमणोके रूपमे जिसका परिचय मिल रहा है, वह युरोपको जङ्वादी वैषयिक संस्कृतिका स्वभाव है । 'आध्यात्मिक लक्ष्यका उपासक भारत कमो भी यूरोपक्रो उपर एशियाके वाह्य वैषयिक आक्रमण करनेमे योगदान नहीं दे सका था । अपने भावों ओर आदर्शोको संसारमें फलानादही भारतकी श्रेष्ठ प्रणाली थो । आज फिर दम उसो प्रणाली का श्यभ्युदुय देख रदे दै । ञिन्तु समयके फेरे चाज वह स्वयं ही बेषयिक व्यापारों में यूरोपके अधीनस्थ दो गया दै । इन बेषयिक




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