समीक्षा की समीक्षा | Samiksha Ki Samiksha

Samiksha Ki Samiksha by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नो शब्द निराला के एक गीत से लिया दै); श्रतः ध्विस्तार को विस्तार दिया चाहता हूँ में १” ( यद पंक्ति श्री निराला जी की दी है । ) इससे श्रागे चलकर सिद्धेश्वर जी श्रपने पत्र में श्रद्वैत श्र दैत की' मीलिक समस्या को छूते हैं श्रीर चेतना के विभिन्न स्तरों के यथार्थ की थ्ोर मेरा ध्यान खींचते हैं। चेतना के विभिन्न स्तय के एकीकरण का एक माग तो झरविन्द घोष से श्रपने दशन में सुभाया ही है, जिस मैं उत्तरोत्तर द्तिमानस की श्रोर बढ़ा जा सकता है। दूसरा छोर जीवन की भौतिक श्र जड़ रिथितियों को सुधारने का है, जिस पर माक्सीय चिन्ता- प्रभावित विचारकों का विशेष श्राग्रद है । परन्तु सिद्धधर जी दोनों मार्गों के खतरों से शायद नावाकिफ हैं । पहले मार्ग मैं दकाम्तिक व्यक्तिवाद दमारे प्राचीन योगियो की भाँति मनुष्य को केवल श््रसंभूतिमूपासतेः ( इशावास्योपनिपद्‌ का शब्द ) के अन्धतम गत में घकेल देगा । ( चदि श्ररविन्दवादी उसे अन्घतम न. मानकर प्रकाशपुज् मान वैठें । 9 दुसरी श्र मार्क्सीय चिंता के फूदड़ समालशास्त्र की एकस्वस्ता श्रीर एक ही डे से सब को दॉकने की प्रदृत्ति के उदाहरण साहित्य में संयुक्त मोर्चा श्र चातस्कीवाद पर रामविलास-शिवदानसिंद-विवाद पर श्रमतराय की पुस्तक श्रीर्‌ दाल की “नई चेतना” में चन्द्रवलीविंद के लेख पर्याप्त हैं । राहुल श्रीर रांगेय रावव के उसी नई चेतनाः में के लेख मेरी बात की पुष्टि करेंगे। . व्यक्ति-स्वातन्त्य का कण्ठावरोध साम्यवाद में होगा, ऐसा कई सांस्कृ- तिक नेताश्रों श्रीर चिन्तकों का एक श्रोर नारा है, तो दूसरी श्र कोरा श्रध्यास्पवादी श्ादशवाद हमें श्रधिकाबिक श्रसामाजिक बना देता है श्रीर व्यक्ति-स्वातन्य के नाम पर दम श्रवाध भोग-स्वातन्न्य की सुस. लालसाश्रों श्रीर एपयाओं की ही स्वप्न-परिपूर्ति तो नहीं करते, यदद बात भी कदी जाती ३ दशन श्रौोर मनोविज्ञान के क्षेत्र में नये-नये विचार सामने श्रा रे है!




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now