वर्त्तमान राजस्थान | Varttaman Rajasthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द वतमान रास्थान ११ बाण लाचार; वकीलों को भी “खाने खिलाने” का घंघा करना पढ़ता या! इख तरह गररीव प्रना-लाखकर देद्रातियों व किषार्नो- के खिलाफ सारे घुद्धिशाली और शिक्चित वर्गे का एक पढ़यंत्र खा काम कर रददा था लिखे गद्दी उवेढ़ वुन रहती थी कि किस तप्ट्‌ इन भोले अन्नदाता से अपना स्वाथे सिद्ध किया लाय । इन चेचारों से राल और राम दोनों रूठे हुए थे 1 महाराजा सह्य महाराजा में अच्छाईयों और घुराइयों का अजीब मेल. था। एक तरक वे ध्में से वड़े डरने वाले थे, रोज़ उठकर गाय घ्मौर गोविन्दु्देव के दर्शन करते; माला जपते, गंगाजल के सिवाय दूसरा पानी न पीते श्यौर सेकड़ों त्राद्मणों और कंगालों कौ खिल.त थ । प्रजा के लिये उनके दिल में कोमल स्थान था | उस्र पर सख्ती करने के वे विरोधी थे । उनके ज़माने में कोई दमनकार्ड नदी घुना गया । दयालु इतने करि जयपुर कै सैंट्रल जेल में सुधारों के नाम पर कुछ नई पावं दि्योँ लगाने के विरो में जब ग्यारद्द मद्दीने फी दडताल हुई तो अधिकारियों के लाख चाहने पर भी बूढ़े मद्दाराला ने कैदियों पर लाठी या. गोलियाँ न चलने दौ । दृ्वरी तरफ़ वे इतने यथाश थे कि उनके महल में तीन चार दजार स्त्रियाँ थी' 1 इन में से व्यादातर को डर या लालच दिखा कर जवानी में फॉस लिया गया था उनकी टता वयात करना कठिन है, अंदाज़ा आसानी से दों सकता है । नतीजा यद्द द्ोता था कि मद्दाराजा को भोग विलास केः




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