बौद्धधर्म दर्शन | Boddhdharm Darshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious, बौद्ध / Buddhism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
776
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य नरेन्द्र देव जी - Aacharya Narendra Dev Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धारा से सुपरिचित ईह, वे इस प्रम्थ के उपासना संत्रत्धी श्रष्यायों को. पढ़कर देंगे कि बैद्ध
उपासना पद्धति मी श्रन्य भारतीय छाधना-घारा के श्रनुरूप मारतीय ही है। मस्यान-मेद के
कारण श्रवान्तर भेद के होते हुए मी सर्वत्र नियूढ़ साम्य लद्षित होता है । वर्तमान समय में
यह साम्यंबोध श्रत्यन्त श्रावश्यक है । वैपम्य जगत् का स्वमाव है, किन्तु सके हदय मे सम्य
अतिष्ठत रहता दै । बहु मे एक, विमक्त मे श्रविमक तया भेद में श्रमेद का वाचका दोना
चाहिये, इसी के लिए शानी का संपुरणं मयल है। साथ ही साथ दव प्रयल के
फलस्वरूप एक में बहु, रविम मे विम तथा श्रभेद में भी मेद दृष्टिगोचर होता है | ऐसी
श्रवस्था में श्रवश्य दी भेदामेद से श्रतीत, वाकू श्रौर मनसू से श्रगोचर, निविकल्पफ परमसत्य
करा दुन द्योता है | प्रति व्यक्ति के जीवन मे जो सत्य है, जातीय जीवन में भी वद्दी सत्य दै |
यददी बात समग्र मानव के लिए मी सत्य है। गिरोध से थ्वविर्ोध की श्रोर गति ही सर्वत्र
उदेश्य र्ना चाहिये ।
(३)
शाना जी का यह प्न्य ५ खस्ढो श्नौर २० श्र्ययो म विमक है । पले पय के
पाँच श्रष्यायो मे वौदध-धम का उद्भव श्रौर स्यविरो की साधना वर्णित है। प्रथम श्रष्याय में
मारतीय संस्कृति की दो घाराएँ, बुद्ध का प्राइर्मीव, उनके समसामयिक श्राचायं, परमार,
भगवान् का परिनिवीण श्रादि विपय वर्णित हैं | दविंतीय श्रष्याय में बुद्ध की शिक्षा की सार्-
मौमिकता, उनका मव्यममागं, यिक्त्रयः पएंचशील श्रादि प्रदर्शित है | ठूतीय श्रष्याय में
बुद्धदेशना की मापा श्रौर उसका विस्तार बताया गया है। चतुर्थ में निकायों का विकास
वर्णित है । पांचवें में समाधि का विस्तार पूर्वक वर्णन है |
द्वितीय खणड के ५ श्रध्यायो काविपरय महायान-धमं श्रीर् उषके दर्शन की उत्पचि
श्रौर विकाएं, उसका साहित्य शीर लाघना है। इस प्रकार छुठे श्रष्याय में महायाननधरम फी
उत्पत्ति श्रीर उसका व्रिकायवाद है । सातवे मे बैद षसछत-खादि्य का श्रीर संकर-संस्कृत का
पस्विय देकर पूरे महायान सूों का विपय-परिचय कराया गया है | श्राठयं में मदयान दर्शन की
उत्पत्ति, उसके प्रधान श्राचार्यों की कृतियों का परिचय । नय मे मार्य, स्तोन, धारणी
झौर तंगरों का संदिप्त परिचय है । दसवें में विस्तार से मद्दायान की वोधिचर्या श्रौर पारमिताश्रों
फ़ साधना वित दै]
तृतीय खणड म वैद दर्शन के सामान्य सिदान्तो का विस्तार से वर्णन है। इसमे
एकादश से चतुर्दश तक चार् श्रष्याव हैं । एकादश में बौद्ध दर्शन के सामान्य शान के लिए.
एक भूमिद है} द्वादश में प्रतीत्यसमुस्ताद, चणमंगवाद, श्रनीश्वस्वाद तया श्वनात्ममाद का
तकपूर्ण खुन्दर पस्विय है। त्रयोदश शरोर चु मे पमः बौद के कमपद शरीर निर्ाण
का मदत्वपूर्य श्रालीचन किया गया है ।
वतुं खण्ड पैचदश से ऊनव्िश तर ५. शरध्यायो म विम दै। इस खएड में बीद्ध
दर्शन के चार प्रस्यानों का विशिष्ट अन्य के झाघार पर विषय परिचय श्रौर झन्य दर्शनों से
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