आनन्द रघुनन्दननाटक | Anand Raghunandannatak

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Anand Raghunandannatak by मुंशी नवलकिशोर - Munshi Nawalkishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ आ०्रण ना० प्र (इति निःकरांतो तप्यं सानंद्‌गानं) भजन्‌ । भुजपुरके भाषामः॥ करमनद्धोडादीडइगोरेलखिनि । चारमञय : कातरमर लाखान |) तिनिछाइतरितउडोलखिनि | से 'डितिकर जांगेंस हित मं सबलोगबनकर [जयरावंचबंतत्खि ... रमआंगाविसनाथवरावर दो उगॉटदो डाबरबलपलबिनि ॥ अर्थ] : भार्गनिते दोइठों लारका आयेँ। चारुभज को येका तीर हो से | सेन एप साइत दम सबलोगन के जोव बंचाये हैं । जिनके अंग नरम हैं आओ विश्वनाध कहे सहांदेकी परोबर बल पाये हैं ॥ ` ( इति जंहेाय इय ) ( उत्याय मवनहित आत्मगतं ) आश्रम मम जय सार इड्‌ रह है कान को है ॥ {4 ग्रक्ताश्च । हाय (हत्कारा ङलधराधर मेंकों सछित छोडि का सयंगये ॥ म्रकविश्यशिव्यः। भी गुरो रचन कों मारि हितकरो हमारी सब ` का.रचा कर्‌ अव शाच में हैं गरू बाहर हिंगयें बम शुर्ःसहष । शीघ्र हा कवर को चलाई ल्यांबी डाता राचत्न के रुघिर -. त मद्ये मजीनदी हो रही हे।इगी (८ मी: ( थिव्यो निःकांत: सबंध क्ितिकारी मय श ` मुजनश्ितः1 वत्स बड़ोकाम कियो आयो सिर संयो ' ससिद्प्यमःअव यथार्थ नाम भयो चला आश्रम कां ॥ भी . इति निःकता ॥ (तत बि्षतिपपरिकरोद्विगजानःो 1: ~ ` | : दिगेजरनु! } मरी कुमारन कैं गये चहल रज भये सधिन पाई | 1 म्रनिश्यश्ष्नखाश्ि नेदत्वा | महाराज में न कहीं है की आपयी कक `“ छात्‌ [इतरो ` रच कर राचिमन को संघार कियो हम निर्वि यत्त॒ ल. गुर्पं सथिजनात्रीर्घा 4 (> व क




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