रामराज्य की कथा | Ramrajya Ki Katha
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.68 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गांवीवाद का प्रभाव ्ौर परिणाम |] ७
गयी हैं तो कांग्रेसी सरकार के थासन में यह सब क्यों नहीं हो सकता ?” इस
प्रदन का उत्तर देना चाहिये क्रिस के सांदोवादी श्रादगे शोर कार्यक्रम को !
उत्तर सीधा है कि चीन में श्राध्यात्मिकता का खोल चढ़ा कर पतनशील
पूंजीवादी शोपक व्यवस्था को पनपने और झक्ति संचय का प्वसर नहीं दिया
गया । चीन में जनता का शासन भौतिक सत्य की कसौटो पर खरी उत्तरने
वाली जनवादी नैतिकता के श्नाघार पर चल रहा हैं । वहाँ सत्य ग्रौर घ्र्हिसा
को जनता द्वारा समभी न जा सकने वाली ईद्वरीय-प्रेररणा की गोली वना कर
जनता के गले से नहीं उत्तारा जाता । वहाँ सत्य श्रौर श्रहिसा का निर्णय
जनता स्वयं श्रपने हित श्रौर कल्याण के तराजू पर तोल कर करती है । चीन
में गांधीवाद के पढें में पूंजीवादी नैतिकता का शासन नहीं, समाजवादी नैतिकता
की व्यवस्था स्थापित हो रही हूँ ।
गांघीवाद के कुछ भक्तों का कहना है कि कांग्रेस श्रौर कांग्रेसी सरकार
के नेतिक पतन का कारण यह है कि इन दोनों ने गांधीवाद के श्रादर्शों को
छोड़ दिया है । कांग्रेसी सरकार ने कभी: मी गांधीवाद से झ्रपना वियदास हुद
जाने की या गांवीवादी कार्यक्रम को छोड़ देने की घोपणा नहीं की । चिदेशी
शासन का शंकुश सिर पर से हट जानें कें वाद कांग्रेस के नेताओों ग्रीर कांग्रेसी
सरकार को इस वात का श्रवसर मिल गया है कि वे श्रपने वास्तविक प्रयोजन
श्रौर उद्देश्य को निरंकुशता से पूरा कर सकें । ऐसा श्रवसर श्राने पर गाँधी-
वाद के मूल उद्देर्यों के परिणाम श्रपने पूरे रूप में जनता के सामने शा
रहे हैं ।
गांधीवादी श्रौर कांग्रेसी शासन में प्रजा की दया उत्तरोत्तर वयों गिरती
जा रही है ? पूंजीपति श्रेणी का निरंकुश शासन श्रौर शोपण क्यों बढ़ रहा
है? इन प्रइनों का एक ही उत्तर है कि गांवीवाद देश की जनता के जीवन का
संकट दुर करने श्रौर सावंजनिक मूर्ति और उन्नति की दृष्टि से क्रियास्मक
नहीं था, न है । गांधी जी. के व्यणितिगत्त रूप से निस्वार्थ श्र त्यागमय जीवन
का ध्ाद्श स्वीकार कर लेने पर भी गांघीवाद के त्याय श्रौर सत्य-धघ्हिसा के
उपदेश की नींव में जनता के शोषण को न्याय मानने वाली नैतिकता छिपी हुई
थी. । गांधीवाद जनता के शासकों चोर शोपकों से जनता के प्रति दया दिखाकर
उन्हें जनता के विरोध से वचने का उपदेश तो देता था परन्तु जनता के
श्रात्मनिर्णय का शिकार पानें की वात नहीं कहता था । गांघीवाद ऐसी
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