स्वर्ण-पथ | Swarn-Path
श्रेणी : स्वसहायता पुस्तक / Self-help book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वम महान् द्ये १७
उन्होंने अपने मनः्क्षेत्रमं ऐसे उत्कृष्ट चित्र विनिर्मित किये थे कि उनकी
आत्मदृष्टि सदेव उन्हें उसी ओर प्रेरित करती रहती थी ।
हमारे मनःक्षेत्रमें जिन-जिन विचारों; भावनाओं तथा आकाछाओंका
उद्रेक होता है, वे ही क्रमशः हमारे भाग्यका; भविष्यका और सफलताका
निर्माण किया करती है । जिसे हम मानवीय विन्युत्-पवाह ( 267७००२]
1038०6६8 ) के नामसे पुकारते हैं; वह हमारी विचार-शक्तिकी प्रबल
तरंगें हैं; जो मनःक्षेत्रसे इच्छादाक्तिके अनुसार प्रबलता धारण कर प्रकट
हा करती ई । जिस व्यक्ति. यप्र विचारसम्पन्न इच्छाशक्ति होती
है, उसका विद्युत्-प्रवाद वायुमण्डमें अधिक क्षोम उत्पन्न करता है और
अपने विषयमें तुच्छ विचार रखता है; अपनेकों बहुत छोटा मानता है और
छोटा गिनता है; उसमें यह विद्युत-प्रवाद ठोप हो जाता है । उसका मुख
तेजस्वी नहीं रहता । वह दूसरेको आकर्षित नहीं कर पाता; उसका वजन
तिनकेके समान होता है ।
हमारा एक-एक विचार हमारे व्यक्तित्वके निर्माणमें लगा है । हमारी
एक-एक कब्पना» एक-एक महत््वाकाड्डा हमें ऊँचा-नीचा किया करती है ।
हम जैसा सोचते-विचारते हैं; प्रकट करते हैं; बोलते हैं, हमारी जेसी-
जैसी मानसिक, वाचिकश्एवं दारीरिक क्रियाएँ: होती है; जेसी भावना में
ह्म निरन्तर रमण करते हैं; तदनुकूल दी ' हमारा पथ प्रदयास्त अथवा
कण्टकाकीर्ण होता है | हम अपनी शक्तियोंको जेसी आज्ञा देंगे; वेसा ही
कार्य वे करने लगेंगी । उनकी विशेषता यही है कि दम जैसी चाह करगे वे
स्वभावतः उन्हीं पदार्थोंको उत्पन्न करेंगी । यदि आपने उनसे बहुत कुछ
आशा की है तो निश्चय रखिये; वे आपको बहुत कुछ सहायता प्रदान
करेंगी । वे अवद्यमेव आपके उत्कृष्ट मनोरथॉकों क्रियात्मक स्वरूप
दे देंगी ।
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