हिन्दी शब्दार्थ - पारिजात | Hindi Shabdarth - Parijat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
731
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दैया (
श्रेया तेद्० (खो) ढाई सेर की रोल, माप,
यटखरा 1
* घ्णाद दे० (पुर) श्रासत्द.1
घ्णि तत्० (खी०) यक्ताय कीलक, पहिये के भ्रमाम
का काटा, सीखीघार, नोंक, बाढ़, घार, सीमा !
श्चणिमा त्त् (पुन) या धातिमा तदू० स्रीर)
(हिन्दी मेँ खी०) धरार तिधयां में की एक सिद्धि.
अत्यन्त छोटा चन जाने की शन्ति!
प्रणीय (वि०) प्रतिसूष्ष्म, वारीक।
शमर तस्० (पु०) करिका, ण्यन्त सूर्म, धान्य
विशेष, सूक्ष्म वस्तु, सप से छोटा हिस्सा । छुप्पर
के छेद से घर में ग्राये हुए सूय के प्रकाश में उड़ते
हुए जो छोटे कश दीख पढ़ते हैं उनमें से एक कण
के साठचें भाग को अरु या परमाणु फहते हैं 1
यह नैयायिकों का धान तत्व है। नेंयायिक
इसी हे हारा सांसरिक पदार्थों की उत्पत्ति मानते
हं । यहं शक्तिमान है { मिलने थौर दिखुड़ने की
शक्ति इसमें बतमा न है 1-- मात्र (गु०) छोटासा !
--चाद (पु०) सिद्धान्त विशेष सशुवाद में जीव
शौर ध्राह्मा '्रणु माना ऐ । यह श्रीवल्टमाचाये
का सिद्धान्त है ।--वादी (५०) अशुवाद को
मानने वाना । -वौक्ञग् (घुर) छोटे कष्ट पदाथ
को देखने के लिये कॉच का वना हुआ एक प्रकार
का यन्त्र, दूरनीन 1
श्मशा व्द्० (षु०) रेद्, योनी पक्त प्रकार का खेल ।
-शड़्गुड (चि०) वेलपग चित्त पड़ा इचा (--
घर (०) मोली खेलने छा कमरा ।--चिन्त तदूर
(पुल) उ्ान पढ़ा श्रा, वेदा गिरा इंद्रा |
वन्धु (०) चश्ा खेटने की कौड़ी ! [गरी ।
श्रिया (रीण) घास का पूरा या. पूला; छोटी
ध्यरादी (स्त्री-) घोती का बह साग जो कमर पर मोड़
कर कधि जाता है. अंगुलियों के श्रीच का मांग ।
अणटलाना तद्० (क्रि) नोकैती करना, ऐंठना,
बॉकापन दिखाना, श्रसिमान करना, श्रमो को
स्वयं सरोड़ना |
श्रर्ध तन्० (द?) परंड्डफ), ्यण्डा, वीच, पेशीकोप,
अण्डकोप, कस्तूरी - (खन) पकी आदि =
उत्पन्न होने का स्थान, गोलाकार 1--फदाह चद्
श्ट
) श्रतज
(१०) जगत्, विश्वे, ससर, गोट ।-- कोप तत्
(घुर) खरक, यैली, भंड --ज तत्० (३०) चण्डे
खे पैदा होने वाते जन्तु, यथा पी-संप-मदली-
मोह-गिरनिर विखखपरः ।
ध्रणएडवणड (स्त्री ) भटा, चे सिर पैर की यात, वकवक 1
प्रणस (स्त्री) श्रसुधिधा, कठिना, सकट 1
श्री तत्° (सटरी°) थासाम का वना हरा रेशसी
वस्त्र चिशेष, ज्यादेतर वह रोदने फे कामें श्राता
है । ध्रसाम की चण्डी बहुत अच्छी होती है ।
श्रड़क्ा तद्० (भ) विना वधिधा किया दभ्रा जानचर
- बैल (१०) साड, धाजसी मनुष्य ।
श्णडेल चद् (बिन) धण्डाबाली ।
रतः तत० (०) इससे, इस कारण, इन्त हेतु, इष्ठकिपे ।
श्रतण्टय तत् (०) दसी करण, दसी दष,
इसलिये ।
श्मतथ्य (वि०) अ्रसल्य, रूढ ।
झतदूशुण (पु० ) चलंकार विशेष,
श्रतु तत्° (०) या ध्यत्तत तदु० ( ६०) देद् रदित,
चिना शरीर का कामदेव [कामदेव का शरीर महादेव
के क्रोध से भस्म हो गया था, इन्द ने इसे महादेव
पर विजय पाने की श्राशा से भेजा था, परन्तु
श्रभाग्यवश वह महादेव के क्रोधापधि से दुग्ध हो
राया । पुनः पार्वली की श्ार्थना से महादेव ते
इसको उज्जी चेत किया । श्रतपुव कामदेव का
नास अतनु है।]
श्रतच्धित तत्० (य°) श्रनललस्य रदित, कर्मर, चपल,
चान्ाङू, जामत । [ स्लनका पनन ।
श्रतर ० (इ०) एष्वसार दतर दान (षु) श्रतर
प्मततरंग (घुर) बह क्रिया जिससे लंगर जमीम से
उखाड़ कर रखा जाता है 1
श्मतरसों (उ०) चीते श्रो, शाने वाले परसों का पूरे
श्रष्ला दिन, वर्तमान दिनि से चीता छुझा या
श्राने चालय तीसरा दिन।
ब्यतकित तत्० (वि०) चिना विचारा, ्राक्स्मिक !
झतक्य तत्० (दि०) अचित्त्य । झमिरवेश्वीय 1
अततत दत्० ( यु ) विनय तक का; विना रेका
बचु छ; गोल, सात पालाकों में पदिछा पाताल 1
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