नारीधर्मप्रकाश | Naridharmprakash

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Naridharmprakash by गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ नारीधमेप्रकाडा 1 रिक्षा-जो किसी कारण स पिता) खामी या पुत्रों के साथ विमनता हो जाय ती ख्री को उचित है कि, उस विरोध के दूर करने का यत्र करती रहें. और इन लोगों को छोड- कर कभी जुदे रहने की इच्छा न करें क्यों कि, खी के अछग और स्वतंत्रता से रहने पर छोग ( दुनियां ) उस के चरित्र पर सन्देह करने लग जाते हैं. चाह वह अपने मन से अपने. को कैसी ही सुचरित्रा क्यों न समझती हो. इस के सिवाय अङ्ग रहन पर दुष्ट लोग उस को सोरी सराह देने ओर बुरे कामो मे ठगाने के छियि तैयार हो जात हैं. जब उस खी के सुचरित पर संदेह हुआ तब केवल उस के ही माथे क- रंक नरी गता, वरन उस के पाति और पिता के दोनों ही के कुछ कलेकित और निंदित हो जाते हैं. इस लिये ख्ियों का सदा सावधान रहना चाहिये कि, [जिन कार्या से इतनी हा- निहों उन को कभी न करें (1 सहै दः सदा प्रष्टया भाव्य ग्रहकाय्यषृ दृक्षया ॥ के ५ के सुसस्कतापस्कस्या व्यय चामुक्तहस्तया ॥ ४ ॥ [ मनुः “ । १५० | द्‌।हा-निते ही हर्षित चित रहे, गहकाज हि परवीन ॥ खच अल्प सामि गृह, राखाटं नाहिं मलीन॥ ४॥ अर्धमटाहपित चित्त रहे धर के काय्योँ मे चतुर होना चाहिये. और घर की सब चीज वस्तु साफ खुधरी रक्‍्खें बहुत स्वचे कभी न करें ॥ ४ ॥ चिक्षा-ख्री को सदा ही दर्षित मन से रहना चाहिये. स्वामी यदि र्ठ जाय; सास) जिटानी इत्यादि गुरुजन यादि के करं; पत्र नौकर, चाकर इस्यादि टघुजन यदि जीदु-




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