बुद्ध हृदय | Buddh Hriday
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand), (५)
पर भी तुम्हें दया नहीं है ? वदद तुम्हारी अर्धाज्ञिनी है आधे अंग
को छोड़ कर जाने का तुम्हें कोइ ढक नहीं है । मैंने कहा-मैं
जगत के छिये पूरे अंग का उत्सग कर रहा हूं तब आधे अंग का
उत्सग हो ही जायगा |
मार पापी-यदि ऐसा है तो पत्नी को भी साथ ठेजाओे।
मैं-जिस अंग का जिस जगदद जैसा उपयोग हो सकता है
उसका उसी तरह उपयोग करना चाहिये । साधना के लिये मेरे
पुरुष अंग की ही उपयोगिता है । सेद्ध बुद्ध हने पर-स्यान जमा-
लेने पर-मैं पत्नी और पुत्र को भी ढेने आऊंगा । अथवा अगर पत्नी
की उपयोगिता घर में ही अधिक होगी तो वहीं रहने दंगा ।
मार पापी-क्या पत्नी साधना नहीं करसकती ? सिद्धां
क्या तुम यह समझते हो कि सारा श्रेय पुरुषों के हाय में है?
नारी क्या बिलकुल अबला है । यदि ऐसा है तो तुम जगत की
सेबा नहीं कर सकते ।
में-छठने के लिये ज्ञानियों सरीखी बातें करनेवाले मार पापी;
मैं तुझे पहिचानता हूं । तू मुझे साधना से शेकना चाहता. है पर
मै तेरी बाते अच्छी तरह जानता हूं। द् नारी का पक्ष क्या ढेगा
ब्रिचद्वित का मार्ग मैं जानता हूं । राहुलमाता का त्याग मैं विश्वहित `
के लिंय कर रहा हूं । नारी भी साधना कर सकती है राहुलमाता
भी साधना करेगी । मनुष्य निर्माण का कार्य भी साधना है जो
कि नारी करती है उसे वही करने देना चाहता हं । जैसे चलने
के लिये एक पैर आगे बढ़ाया जाता है दूसरा पैर जमा रता
दै-दोनो पैरों को एक साथ नहीं बढ़ाया जाता उसी प्रकार मैं अगि
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