श्री जवाहर - किरणावली भाग - 1 | Shri Jawahar - Kiranavali Bhag - 1

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Book Image : श्री जवाहर - किरणावली भाग - 1  - Shri Jawahar - Kiranavali Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- ९३ -_.. धमं संबंधी मिथ्या विचारो का निराकरण है, फिर भी वे प्रमाणभूत शा से ह्च मात्र इधर-उधर नहीं होते । उनम समन्वय करने को अदूभुत क्षमता है । वे प्रत्येक बाब्दावली की आत्मा को पकद़ते हैं और इतने गहरे जाकर चिन्तन करते हैँ कि वहाँ गीता भौर जैनागम एकमेक से रगते ह । गृहस्थजीवन को अत्यन्त विकृत देखकर कभी-कभी आचाय तिर. मिला उरते हँ ओर कहते है-- भिन्नो ! जी चाहता है, र्ना का पर्दा फाद्कर सव वातं साफ-साफ कष दू! नैतिक जीवन की विशुद्धि हुए बिना धार्मिक जीवन का गठन नहीं हो सकता, पर जोग नीति की नहीं, धर्म की ही बात सुनना चाहवे हैं । आचाय उनसे साफ़-साफ कहते हैं-लाचारी है मित्रो! नीति की बात तुम्हें सुननी होगी । इसके बिना घर्म की साधना नहीं हो सकती । भौर वे नीति पर इतना हो भार देते हैं, जितना धमं पर । चायं के प्रवचन ध्यानपूलंक पद्ने पर विद्वान्‌ पारक यह स्वीकार किये बिना नद्दीं रद सकते कि भ्यवहायं घमं की ऐसी सुन्दर, उदार और सिद्धान्तसंगत व्याख्या करने वाले प्रतिभाशाली व्यक्ति अत्यन्त विरल होते ह । आचार्यश्री अपने व्याख्येय विषय को प्रमावज्ञारो बनाने के हये भौर कभो-कभी गूढ विषय को सुगम वनाने के रिष कथाका साश्रय र्ते ह । कथा कने की उनकी दोर निरा है । साधारण से साधारण कथानकः में वे जान डाल देते हैं । उसमें जादू-सा चमत्कार आ जाता है । उन्होंने अपनों सुन्दरतर शेछी, प्रतिमामयी भावुकता एव विशा अनुभव की,




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