तत्वार्थश्लोकवार्त्तिकालंकार भाग - 5 | Tatvarthashlokavarttikalankar Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
700
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about माणिकचंद कौन्देय-Manikchand Kaundey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तस्वार्थचिन्तामणि: ५
न ~ ~ 4 १ ~~ ~ = र = गाय कण ~ ~~ + ~~ ~
पूर्वक कार्योपयोगौ आत्मीय परिणामे प्रयनते अन्तहतं काठतकके च्य क्मोके उदयको टाख्देना
अन्तरकरण उपराम कष्टा जाता है और वाधिहये कमी फल्प्रापतितक यों ही सताम उनका पडे
एना सदबश्था उपरम है | उपदाम करनेफ स्यि मो आतमाभो चरा कर प्रयन करना पडता है, जिससे
कि उदीरणाकया कारण उपस्थितं होकर वम उदयम नहीं आसझे । जस्मै पडी इई फिटस्ि के
भरीच दवानेपे, छ्यि सतत उद्यत रष्टना पडता है । तभी तो चाहे जब जलम कीच घुलने नहीं
पाती है | तीव्र वायुः झकोरों द्वारा या जटपात्रके उधल पुधल कर देनेसे यदि फिटकिरीक उद्यमको
म्यर्थ करदिया जाय तो जमे भीचकी सामर्थ्य प्रकट हो जाती है । उसी प्रकार आत्मारमि भी तीव्र
रुददीरणाओ कारण मिल जानेपर आस्माका उपदामार्थ किया गया प्रयत्न व्यर्थ होकर कमान सामर्थ्यं
प्रकढ हो जाती है । जवतभ कमीकी दाक्ति उद्भूत नहीं हुई है तबतक उपशम माना, जाता है |
औषधियों द्वारा रोगोंका प्रकट नहीं होना प्रसिद्ध है । फर्मीका उपशाम आप्माकी विदयुद्धिरूप परिणाम
माना गया है कीचका दवा रहना जठ्वी एबष्छता ही तो है ।
तेषामात्यंतिको हृ।निः क्षयस्तदुभयात्मकः ।
क्षयोपदाम उद्रीतः क्षीणक्षीणवबटततः ॥ ३॥
उन प्रतिपक्षी कामौ अत्यन्त काठतकके लिये दनि हो जाना क्षय माना गया है, जैसे कि
दबी वगीचवाले पानीकों दूसरे स्वच्छ पाते दुढेल ठेनेपर कीचका अत्यन्ताभाव हो जाता है. । कर्मोओी
अनन्तकारुतनमै, छिये हानि दो जानेपए हुआ भात्मका सुविज्ुद्ध परिणाम ही क्षय पढ़ता है । जैनेंकि
यहां तुष्छ अभाव कोई पदार्थ नहीं माना गया है ¡ रोगे उपरमते ओर रोग क्षयसे हो जानेबाली
भामा) निदयुद्िमें भारी अन्तर है । तथा क्षय और उपराम उन दोनोंका तदात्मक हो रहा परिणाम
तो कमोकी कुछ क्षीण और कुछ अश्वीण सामर्थ्य हो जानेसे क्षयोपराम भाव मिध कहा गया है । स्व
जाति प्रकृतियोंका उदयाभावरूप क्षय और उन्हींका सदवस्थारूप उपदाम तथा प्रतिपक्षी कर्मोकी गुणकों
एक देशसे घातनेनाीं देदाघाति प्रकृतियोा उदय होनेपर शयोपराम परिणाम होता है, जैसे कि कोदो
या मांगफ्तीको विदोष श्रकार द्वारा घोनेसे उनकी मद ( नशा ) उत्पादक दाकतियां क्षीण अक्षीण दो
जाती है ¦ यक्षं क्षयोपराममे पडे द्ये क्षय! अथं अत्यन्त निषि नहीं है । पिन्तु उपम शद्रका साहचर्य
बॉनिस क्षयंका अर्थ फछ नदीं देन नौरा प्रदेशोदय होजाना स्वरूप उदयाभाव है ।
उदय: फलक। रित्वं द्रव्यादिग्रत्ययद्वयात् ।
द्रब्यात्मल: भद्देतुः स्यात परिणाम,नपेक्षिण: ॥ ४ ॥
दव्य, क्षेत्र, बाल, भाव, इन वह्िरंग और अन्तरंग दोनों निमित्त कारणोंसे बिपाकर्म प्राप्त
हो रहे केमीका फर देना रूप कायं करना उदय है | अर्थात्-्रभ्य, क्षेत्र, काछको बढिरंग कारण
User Reviews
No Reviews | Add Yours...