हिलोर | Hilor

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Hilor by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपमान का भाग्य ध भवितव्यताके भी तो भक्त हैं । इसलिय समस्त शंकां का निवारण इस एक ही बात से कर लेते हैं कि होनहार कौन टाल सकता है ! पर सच पूछिए, तो यह एक सीधी- सी बात है कि युवक पाखाने से निकलकर हाथ-मुंह धोने के लिये उधर बेठा था। एकाएक धक्का लगा. और वह नीचे जा गिरा | २ | इस घटना को हुए कई वषे व्यतीत हो गए । उस समय नरेंद्र स्टुडेंट था । आज एक हाइस्कूल में हेड - मास्टर है । इस समय उसकी अवस्था पेंतीस वषे की हो घचुकी है | पर उसका स्वस्थ शरीर यदि आप लोग देस्वें, तो चकित हुए बिना न रहें । उसके मुख पर कहीं भी न तो कोइ सिकुड़न आहे, न उसके सिर का कोद बाल ही पका है । उसके शौय-पूणे, तेजोमय मुख पर एक 'अदूमुत अ।भा भन्तभज्ञाती रहती है । । अपने शहर में, टेनिस के खेल में; वह दपना प्रतिद्वंद्वी नहीं रखता । परंतु एक खटकनवाली बात भी उसके शरीर में आ गद रै! बह यह कि उसका एक पेंर ज़रा-सा छोटा पड़ गया है । उपस्थित सभ्यगण इस पर एक दूसरे की श्रोर देखने लगे । कोई मुस्किराने लगा, किसी ने सिगरेट सुलगाकर पते मन के भाव छिपाने की चेष्टरा की : और कोई मुं ह फेरकर इधर-उधर कने लगा ।




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