मानसिक रोग कारण और निवारण | Mansik Rog Kaaran Aur Nivaran

Mansik Rog Kaaran Aur Nivaran by जयप्रकाश भारतीडॉ. प्रकाश भारती - Dr. Prakash Bharti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गे दम मम मानसिक रोग ही शन्य कार्यो वेज 08790 ए८टठ ३० २०० ००० हब जियोकिननार अंधेरे से चिद होती हो सहसा स्मूद्ति चली जाती होः भूत परते कॉ भय रहता हो धकान सी झनुभव वरता हो घवराया हुमा रहता हो पघां किया जाना रुचिकर हा शरीर से रस निवल जाने वे कारण धथवाविसी रोग के बदद दुबलठा भर भय था भनुभव करता हो उसके लिए यह भो पधि उपयोगी है । बास्टीकम 08081८एघा २०० ६०००--इस धभोपधि का रोगी दूसरे या कप्ट में देख र उसके प्र्ति सहानुभूति प्रवट बरता है। यदि बच्चा हो तो वह भ्रकेला विस्तर पर जाना पसद नहीं करता उदास रहता है और चाहता है वि कोई उससे सहानुभूति व्यक्त करे । रोगी वा मुख गदा दुवला पीला भर मस्सा से भरा रहता है। किसी भय झावेग प्रथवा दुख वे वारण मनुष्य बीमार पड जाता है छीनते अथवा खाँसते समय मूत्र भी बूद निकल जाती है श्यवा वह ऐसा श्रमुभव करता है वि वूँद निकल गई है। एसे लक्षणों म यह ग्रोपधि उत्तम है। घबराहद झथवा डर के साथ यदि पशाब का लक्षण विद्यमान हो तो अय कौई झोपधि इतना प्रभावी काय नहीं वर पायेगी जितना कि कास्टी- बम कर सकती है। थाहै कंसा भी रोग बयो न हो इन सक्षणो पर यह अचून झौपध है । इसी लक्षण पर एक चि ताप्रस्त वेचन रोगी की मैंने ठीव बिया है। उसकी पिहली पर खुजली बहुत परेशान किया करती थी । इससे प्रूब श्रनेक श्रीपधिया वा सेवन कराया जा चुका था कि तु सब प्रभावहीन रही थी। अत मे खाँसते समय पशाब वा श्राना श्रथवा झाभास होना इस लक्षण को मुख्य मानवर कास्टीवम १००० की एक खुराक दी गई उससे रोगी स्वस्थ हो गया 1 डिजिटलिस 018॥8115 ३० २००--उदासी भय घबराहट भविष्य के विपय सं चिता इतना डर समाना कि. यदिं हिला-डुला तो हय गति रुक जायंगी जडता का झधिक होना लेटे रहने मे ही अपना कल्याण समभकना हिलने मे भयभीत होना श्रत्यधिक दुब लता मानो शक्ति बिलकुल क्षीण हो गई हो श्वास में झनियमितता झाँखो वे पर्दों का नीला पड़ जाना झत्यधिक मिचली श्राना उल्टी होने पर भी मिचली का समाप्त न होगा तनिक-सा भी भोजन करने पर बेचैनी श्रनुभव वरना झादि इस झापधि के मुख्य सक्षण हैं । बाइ श्र हृदयस्यल के समीप पीड़ा का झनुभव होना नाडी का बहुत ही शिथिल गति से श्रथवा रुक रुककर चलना हिलमे पर हृदयगति




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