प्रबुद्ध यामुन | Prabuddha Yamun
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अक--दुसरा दृश्य ५
याञ्ुन--जनादेन, चिता न करो । गुरुदव अतत दी दनि ।
राज वह रगेशसमुनि क यरद, गोष्ठी मे, गए हैं ।
मह्लि०--पर बछ््ड़ों का वद्दा क्या काम था ? क्या वे
भी गोष्ठी में सम्मिलित होंगे ?
यामुन--गुरुदेव उन नार्थो को फिर कर छोड जात ९
सृग-शावक तो उन्हें क्षण-भर भी नददीं छाड़ता । मल्लिनाथ
दादा, नार्थो पर गुरुदेव सदा द्या-वृष्टि करते रहत दै ।
उनकी करुणा अपार दे । देखा नहीं, कल साथकाल वह
उसे गोद में बिठाए 'झपने दाथ से दूब खिला रहे थे ?
रग०--कभा-कमी तो जीच-द्या के 'झागे वह झर्निद्दीत्र
'और संध्योपासन तक भूल जाते हैं ।
याञुन-सस्य है । एक दिन गुरुदेव अपनी पणे-शाला मे,
द्भे-शय्या पर, एक हाय से तो कपिला के बद्ध को थपथपा-
केर खुला रहे ये, ओर दुसरे हाथ से सृग-शावक को दूब
चरा रदे थे । इतन म जव मेन उन्हें संध्योपासन की सूचना
दी, तब उन्होंने धीरे से कहदा--'“ब्रच्चा, ग्रह सेध्योपासन
ही तो कर रहा हूँ । प्राणियों के लालन-पालन में सुरे नारायण
की लीला प्रत्यक्ष होती है । › यद कदते-दी-कदते उनके
प नेत्रो मं यसू छलक श्राए-वाणी गदुगद् द्यो
गई ।
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