अस्तेय दर्शन | Asteya Darshan

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Asteya Darshan by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ : शस्तेय-दशंन्‌ तय करतो दै । जव उसका जीवन समाप्त हरा तो उसने वह मशाल पने शिष्य को दे दी और शिष्य आगे बढ़ा । सगर दुभाग्य से कया हुआ, संत वाउज़ कहते हैं कि शिष्य के हाथों में दी हुई मशाल बुक गहं ओर क्रियाकाण्डं के खाली डंडे दी शिष्यो के हाथ मे रह गये हैं । उनमें रोशनी नहीं है। वे ,खुद भी अ'धकार में ठोकरें खा रहे हैं और उनके पीछे की भीड़ थी ठोकरें खा रही दै | उस मार्मिक संत की कही हुई बात जब दम पढ़ते है या सुनते है तो हमारे मन में भी यही विचार आता है कि वास्तव में समाज की स्थिति ऐसी ही बन गई है। आज अहिंसा श्नौर सत्य की मशालें हाथों में अवश्य हैं; किन्तु वे बुमी हुई मशालें हैं--खाली श्रकाशविह्दीन डंडे मात्र हैं । यही कारण है कि हमारे जीवन में कोई प्रगति नहीं हो रही है । आगे झाने वाली प्रजा ` को कोई रोशनी नहीं सिल रही है और सव ठक्कर खा रहे हैं । समय-समय पर साघु-समुदाय एकत्र होता है योर साघु- समाचारी का निर्माण क्रिया जाता दे । लम्बे-चौड़े वाद-विवाद होते है कि साधुं को जीवन में किस प्रकार चलना चाहिए और किस प्रकार नहीं चलना चाहिए । समाचारी बनाने के लिए समाज के अन्यतम सेवक के नाते सुभे भी उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त होता है । मैंने देखा कि नियमों पनियमों की लम्वी- चौड़ी धाराएं वनाई जा रही हैं और सप्ताह के सप्ताह लगाये




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