भारतीय राष्ट्रियता किधर | Bharatiy Rashtriyata Kidhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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No Information available about रघुवीर शरण दिवाकर - RAGHUVIR SHARAN DIWAKAR
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शास्त्रों की दुद्दाई और वितरेक-दृष्टि
पुरातनत्राद प्राचीन धर्मे-ग्रन्थों से प्रेरणा लेने का पाठ पढ़ा
कं< उलभान को और बढ़ा देता है। पहले तो यहीं एक पहेली
है किकौनसा प्रन्थ घर्म-प्रंथ है और कौनसा श्रधमप्रथ है?
जहाँ संत-साघु-जन ने प्रंथ-रचना की है, वहां दुष्ट ब॒ दुःस्वार्थी
व्यक्तियों ने भो अनेक ग्रन्थों का निमाण किया है। फिर, अच्छ
से अच्छे श्रंथ-कत्ता ने भी सनुष्य होने के नाते भूले की है ।
इस तरह कोई भी ग्रन्थ विकृतियों से शून्य नहीं है। इसके
अतिरिक्त ये धर्स-प्रंथ एक ही समय में नहीं लिस्व गए है और
इस कारण अनेक युगां की अनेका नेक घटनाओं व व्यवस्था
का वणेन उनमे मिलता है और समय-समय की परिस्थितियों
व आवश्यकताष्झों की अपेक्षा वहां होने से उनमे ही परम्पर
भिन्न व विरोधी बातों का समावेश है। फिर, विभिन्न धर्मों व
एक एक ही घम के झनेक पंथों के प्रंथा की पारस्परिक विषम-
ताओं का अंत नहीं है । कोई कुछ कहता हैं, कोई कुछ । सच-
मुच घसे-प्रथों की दुद्दाई एक गोरख-धन्घा ही है। आज के युग
की समस्याओं को सासने रखकर अन्धश्रद्धा-पूणें अविवेकमयी
दृष्टि से उन्हें दखने से ृष्टिविश्रम ही होगा, उससे समस्याएं
सुलभेगी नहीं, ज्यादह उलने,गी । व्यक्ति समाज व राष्ट्र के
विकास के लिए समयोचित परिवतैन अनिवायें है पर शास्त्रीय
प्रसेखत्राद उसकी सबसे बड़ी रुकावट है। जिन बातों मे समाज
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