भारतीय राष्ट्रियता किधर | Bharatiy Rashtriyata Kidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शास्त्रों की दुद्दाई और वितरेक-दृष्टि पुरातनत्राद प्राचीन धर्मे-ग्रन्थों से प्रेरणा लेने का पाठ पढ़ा कं< उलभान को और बढ़ा देता है। पहले तो यहीं एक पहेली है किकौनसा प्रन्थ घर्म-प्रंथ है और कौनसा श्रधमप्रथ है? जहाँ संत-साघु-जन ने प्रंथ-रचना की है, वहां दुष्ट ब॒ दुःस्वार्थी व्यक्तियों ने भो अनेक ग्रन्थों का निमाण किया है। फिर, अच्छ से अच्छे श्रंथ-कत्ता ने भी सनुष्य होने के नाते भूले की है । इस तरह कोई भी ग्रन्थ विकृतियों से शून्य नहीं है। इसके अतिरिक्त ये धर्स-प्रंथ एक ही समय में नहीं लिस्व गए है और इस कारण अनेक युगां की अनेका नेक घटनाओं व व्यवस्था का वणेन उनमे मिलता है और समय-समय की परिस्थितियों व आवश्यकताष्झों की अपेक्षा वहां होने से उनमे ही परम्पर भिन्न व विरोधी बातों का समावेश है। फिर, विभिन्न धर्मों व एक एक ही घम के झनेक पंथों के प्रंथा की पारस्परिक विषम- ताओं का अंत नहीं है । कोई कुछ कहता हैं, कोई कुछ । सच- मुच घसे-प्रथों की दुद्दाई एक गोरख-धन्घा ही है। आज के युग की समस्याओं को सासने रखकर अन्धश्रद्धा-पूणें अविवेकमयी दृष्टि से उन्हें दखने से ृष्टिविश्रम ही होगा, उससे समस्याएं सुलभेगी नहीं, ज्यादह उलने,गी । व्यक्ति समाज व राष्ट्र के विकास के लिए समयोचित परिवतैन अनिवायें है पर शास्त्रीय प्रसेखत्राद उसकी सबसे बड़ी रुकावट है। जिन बातों मे समाज \9




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