धर्मशर्माभ्युदय | Dharmsharmabhyudaya

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Dharmsharmabhyudaya by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्य धर्मशमाम्युदय है तय हास्य श्रादि रस प्रकट हो जाते हैं । इन्हींको दूसरी जगह स्थायि माव कदा है | यदद स्थापिमाद जव विमाव श्रनुमाव श्रौर संचारी माकि दवा प्रसुटित हेता है तवर रख कहलाने लगता द । यह रए षदा सदष जनैकसंबेद्य हो होता है। सब रस नौ हैं--१ श्ज्वार, र हास्य, २ करुणा, ४ रौद्र, ५. धीर, ६ मयानक, ७ वीमत्छ, ८ शदूमुत श्रौर ६ शान्त ! कई लोग शान्तो रख मीं मानते उनके मते रही रखमानेगयेदैं श्र भरताचार्यने चात्सल्यको भी रस माना दै तव १० भेद देते हैं श्रांठ, नी श्रौर दश इम्‌ ठीन विक्ल्मोभेते ६ का मिकल्य श्रनुमवगम्य,, थुक्तिसंगत शरीर झधिकजनसंमत मालूम होता है । फाव्यका श्रवाद-- वाव्यका प्रवाद गथकी श्रपेत्ता श्रथिक श्यामन्ददायी होता दे इसलिए, बुद इतने श्रथिक वेगसे प्रवाहित दुआ कि उसने गद्य रचनाकों एक प्रकारसे विरेमूत दी कर दिया । धर्मशास्र, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष, झायु्वेद श्रादि दिपरयेकि म्न्य काव्य रूपमें ह। लिखे जाने लगे । यही कारण रहा कि संस्कृत सादित्यमे पथयमय जितने प्न्थ हैं उतने गयमय अन्य नहीं हैं । संसृत खादिरयके विपुल मंडारमें जन गद्यमय अ्योकी छोर इष्टिपाव करते हैं तन बादग्परी, भीदपंचरित, गयचिन्तामणि, तिलकमझरी श्रादि 'दश पाच अन्यों पर दी दृष्टि रफ जाती है पर पयमय प्रन्यें पर श्रच्या- हव गते चाये बढ़ती जाती है । धमेरमभ्युदय- सैन बाव्य प्रन्पोर्मि मद्दकवि इरिचन्द्रका भमंशमांस्वुदय थपना एक मदजपू्ण स्मान स्पवा हे । इकर रव्यमयी मारतीके दाय पदर सी्पेकर भी धर्मनाप मगवानका जीवन-चरित लिखा गया है । दकौ सर न्द्र शन्दायली शरोर मनोहर पल्यनाए' देवर ददय श्ानन्दते पिभोर




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