कथा - कुसुमान्जलि | Katha Kusumanjali

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Katha Kusumanjali by डॉ. भागीरथ मिश्र - Dr. Bhagirathi Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ इ) ये तत्व भ्रपमे वान्तविक् सूप मे सम्पूणं सिष्य क ही भ्रादार ह । कद्दानी का उद्देश्य कहानी का उद्दे यय निश्चित रूप से मनोरक्षन कहा जा सकता है क्त्तु इस मनोरज्जन के पोछे भो एक ध्येय वर्तमान रहता है! यह ध्येय जीवन की किसी मामिक अनुशुति को भ्रभिव्यक्ति में हो मिहित है । उपस्पासकार या महाकाव्य का कवि यदि सम्पा गोवन्द व्याख्या करता है, तो कहानोकार मानव मव के उन तथ्यों को या गहरी प्रतु सूनियो को प्रभिग्यक्त करता है गोक्रि जोवन के प्रन्तरतम से सबन्पित होतो है । वस्तुतः कढानोकार मानव-जौवन से सम्बन्धित समस्याप्रो पर प्रकाश लता दै, किन्तु यह उदेश्य प्राठुनिक कहानियो मेश्रभिधेयभ्‌ होकर ग्यजित ही होता है । हितोषदे्' या उसी दञ्ज पर लिखी गई प्राचोन कहानियों में कथा कहते के साथ साथ उपदेश वी मात्रा भौ विद्यमान रहतो थो । भाघुनिक कहानियों विशिप्ट उददू प्य पी प्रतिपा- दिका होती हुई भी उपदेशात्मक नहीं होती । १ झाजक्ल की कहानियों में घरिय्र चित्रण को प्रधानता रहती है, धतें, किसो भी उदद रय को भमिव्यक्ति उसमें स्पष्ट नहीं होतो। चरित्र चित्रण के रूप में या तो माससिक विस्लेपण फिया जाता है या फिर लेखक जोवन-सम्बन्धी श्रपने दृष्टिकोण को प्रकट करता है । उमे प्रावा प्रतिवादी लेखक समाज के यर्तमान संगठन में प्राून-दूल परिवर्तन चाहता है, बह सर्वहारा वर्ग के सुख-दुगय, श्राशा-तिरादा भर उनको जोवन-सम्बन्धों श्रनुमूतियो षो साहित्य का विपय बनाकर क्रातिकारी मावनाग्री के प्रसार द्वारा उनमें जागूनि उत्पन्न करना घाहता है । कया-साहित्य में उनको यहीं क्ान्लिकारी विचार-घारा विद्यमान रहती है श्रौर उसके साहित्य वा उद्दे स्य भी क्रान्ति या प्रचार ही रहता 1 दुद्यक्टानीकारयर्तमान सामाजिक समस्याप्नो पी विपमताषो चिधित करे उनसे प्रति श्रमने सुधारवादो दृष्टिर कौ श्रषनो कटा नियो पेद्वितितक्रदै ह! मनोविषश्देपक क्चयाकार मानद-मम शै




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