महबंधों | Mahabandho

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Mahabandho  by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिरिभगवंतभूदबलिभडारयपणीदो महाबंधो तदियों आएुभागवंधाहियारो १५ सरिणएयासपरूषणा १. सण्णियासं दुविधे-सत्थाणं परत्थाणं च । सत्याणं दुवि ०-नह० उक० | उकस्सए पगदं । दुवि °-ओपे आरे° । भोपे° आभिणिबोधियणाणावरणस्स उकस्सयं अणुभागं वंधेतो चदुणाणावरणीयं णियमा बंधगो तंतु उकस्सा वा अणुकस्सा वा। उकस्सादो अणुकस्सा बहाणपदिदं वंधदि अणंतभागहीणं बा ५ | एवमण्णमण्णाणं | णिदाणिद्राए उक० वं° अहदंस० णियमा वं० | तं तु ठेह्ाणपदिदं ब॑धदि । एवमण्ण- मण्णाणं | साद० उ० बं० असाद० अवंधगों । असाद० उ० बं० साद० अवंध० | एवं आउ-गोदं पि। ५ य ज ^^ ^~“ “~^ ^ ~ ~~ ~ “^~ १५ सनिकपप्ररूपणा ९. सन्निकपं दो प्रकारका है- स्वस्थान सन्निकपं श्नौर परस्थान सननिक्रषं । स्वस्थान सननिकपं दो प्रकारका है-जवन्य और उत्कृष्ट । उठ्कप्का प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका दे-- मोघ और आदेश । आओघसे झामिनिवाधिकज्ञानावरणके उत्कछ अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरणका नियमसे बन्ध करना है । किन्तु ह्‌ इनके उक्ष श्रनुभागका भी वन्ध करता हं ओर अदुक्छष ्नुभागका मी वन्ध करता है। यदि श्रनुकछृष्ट अनुभागका बन्ध करता है तो वह्‌ उनके क्क अनुभागवन्धकी अपेन्ता छद्‌ स्थान पतित अनुकृष्ट च्नुभागक्रा बन्ध करता है । यातो अनन्तभागहीन श्रलुमागकरा बन्ध करता है या श्रसंख्यान भागहीन या संख्यात. भागहीन या संख्यातगुणएहीन या असंख्यातगुरएहीन या अनन्तगुणदीन अनुभागका बन्ध करता है । पाचों ज्ञानावरणौका इसी प्रकार परस्पर सन्निकप जानना चादिए । निद्रानिद्राके उत्कृष्ट झनुभागका बन्ध करनेवाला जीव श्राठ दृ्नावरणका नियमत बन्ध करता है किन्तु वह इनके उत्कृष्ट अनुभाग का भी बन्ध्‌ कत्ता ह यौर शनुत्कप्ट अनुभागका भी । यदि श्रनुकृष्ट॒श्रनुभागक्रा बन्ध करता है तो वह उनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धकी अपेक्षा छह स्थान पतित अनुत्कष्ट अनुभागका बन्ध करता है। सत्र द्शनावरणोंका परस्पर इसी प्रकार सननिकपे जानना चाहिए। सातावेदनीयके उत्कष अलुभागका बन्ध करनेवाला जीब श्रसातावेदनीयक। बन्ध नहीं करता है । असातबेदुनीयके उल्छष्ट अलुभागका बन्ध करनेवाला जीव सातवेदनीयका बन्ध नहीं करता है। इसी प्रकार आायु और गोत्र क्के विषये भी जानना चाहिए । १. ता० प्रतौ श्रगएुभागा (ग) चदु~ इति पाटः ।




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