भारतीय आधुनिक शिक्षा | Bhartiya Adhunik Shiksha
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय भाषाएँ ओर हिन्दी
अनुवाद
सुरेश चन्द्र मिश्र
स्नातकोत्तर शिक्षक (हिन्वी)
केन्द्रीय विद्यालय, दा.घा,नि.
मैथन बाँध, धनवाद, बिहार - 828207
एक भाषा से दूसरी भाषा में सटीक अनुवाद एक चुनौतीपूर्ण
कार्य है। अनुवाद कं माध्यम से न केवल भाषा साहित्य समृद्ध
होता है अपितु भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद के माध्यम
से विभिन्न सस्कृतियों का आदान-प्रदान भी होता है। इस प्रकार
अनुवाद विभिन्न भाषाओं तथा भाषा भाषियों के बीच एक सेतु
का कार्य भी करता है। वर्तमान समय में अनुवाद की प्रवृत्ति
बढ़ी है जो एक आशाजनक स्थिति है। तथापि अच्छे अनुवाद
के लिए सुयोग्य अनुवादकों को प्रोत्साहन देना तथा अनुाद कार्य
को एक रचनात्पक कार्य की सन्ना प्रदान करना अति आवश्यक
हे प्रस्तुत लेख में लेखक ने विभिन्न भारतीय भाषाओं से हिन्दी
में तथा हिन्दी से उन भाषाओं में हुए अनुवादों के विषय में
रोचक जानकारी प्रदान की है।
हिन्दी में अनुवाद की परंपरा बाबू भारतेन्दु के प्रयासों
से प्रभावित्त होती हुई “निराला” और प्रेमचन्द तक चलती रही ।
अपने नए परिदृश्य मे भी यह नेशनल बुक ट्रस्ट', साहित्य
अकादमी, 'भारतीय ज्ञानपीठ जैसी संस्थाओं के कारण
आन ख्याति अर्जित कर रही है । विगत दो दशको से भारतीय
भाषाएँ यथा असमिया, उड़िया, गुजराती, कन्नड़, मराठी,
मलयालम, तमिल, तेलुगू, बगला आदि भाषाओ की कविताओं,
कहानियो, उपन्यासों, नाटकों, निबन्धों के हिन्दी अनुवाद
धडल्ले से हो रहे है, यहाँ तक कि आज इन भाषाओं में उपलब्ध
जीवनियाँ एव आत्मचरित भी हिन्दी अनुवाद की कंडी मेँ
पुस्तकाकार रूप से जुड़ गए है । नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा हाल
ही में प्रकाशित उडिया लेखक फकीर मोहँन सेनापति का
आत्मचरित एक ऐसी ही उल्लेखनीय पुस्तक है । कुछ भारतीय
भाषाओं के सुप्रसिद्ध समकालीन रचनाकारों का समूचा कृतित्व
ही हिन्दी में प्राप्त है । उड़िया के सीताकान्त महापात्र, कन्नड
के यू.आर. अनन्तपूर्ति ऐसे ही सौभाग्यशाली रचनाकार हैं ।
इस प्रकार हिन्दी समृद्ध ही नहीं हुई अपितु वह भारतीय
भाषाओं से सुपरिचित भी हुई है । इस दृष्टि से यह हिन्दी में
एक महत्वपूर्ण नई शुरुआत है|
अनुवादों की परम्परा के आरभिक दौर में हिन्दी में एक
लम्बे समय तक वही साहित्य आता रहा जिसके रचनाकारों
को अखिल भारतीय स्तर की ख्याति प्राप्त थी | रवीन्द्रनाथ,
बकिम बाबू, सुब्रह्मण्यम भारती ऐसे ही रचनाकार रहे है । यहां
तक कि शरद बाबू को भ्रमवश हिन्दी का ही रचनाकार माना
जाता रहा है | हों खोजी अनुवादकों की कमी अवश्य अखरने
चाली थी क्योंकि खोजी अनुवाद का खतरा अनुवादक-प्रकाशक
नहीं लेना चाहते थे तदुपरान्त 'कहानी' और 'माया' जैसी
पत्रिकाओ के माध्यम से इस प्रकार के अनुवाद को प्रोत्साहन
मिला जिसमे विश्वकथा साहित्य तो शामिल था, साथ ही यगाधर
गाडगिल, व्यगटेश माडगूलकर, समरेश बसु जैसे अनेक लेखक
भी शामिल थे जो स्वयं अपनी भाषाओं में उस समय उभर
ही रहे थे। “कहानी” की सहयोगी पत्रिका “उपन्यास” में
माणिक बन्दोपाध्याय जैसे लेखको के उपन्यास सामने आए ।
“धर्मयुग ओर साप्ताहिक हिन्दुस्तान” जैसी पत्रिकाओ ने इस
कड़ी को बनाए रखा । साहित्यिक पत्रिकाएँ तो अपना योगदान
करती ही रहीं जौर एक दिन हम मलयालम के कतबी शिवशंकर
पिल््ले और मुहम्मद बशीर जैसे लेखकों के उपन्यास से भी
परिचित हुए। तेतुगू, तमिले, कननड भाषाओं की ओर भी
हमारी खिड़की खुली और एक दिन एक ऐसी नई स्थिति भी
बनी कि उडिया की प्रतिष्टा राय, शकुन्तला पंडा, यशोधरा
मिश्र जैसी लेखिका भी हमारे लिए नई नहीं रहीं । बगला
के शंखघोष, सुनील गॉगुली और शक्ति चट्टोपाध्याय जैसे
रचनाकार हिन्दी में भी आ गए तो उधर पंजाबी के पाश और
सुधीर पातर हिन्दी के बन गए, यहाँ तक कि हिन्दी
पत्र-पत्रिकाओं में पच्चीस-तीस वर्ष की आयु वर्ग के
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