पउमचारिउ भाग - 3 | Paumachariu Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वियालोसभो संधि फे
[ ४ ] यह सुनकर बिराधितने दषपृवेक कदा, “भीतर ऊे
आओ । सचमुच में धन्य हुआ कि जो किष्किधानरेश, स्वयं
अभिमान छोड़कर मेरी शरणमें आये ।” तब सम्मानित होकर
दूत वापस गया ओर आनन्दके साथ अपने स्वामीको छेकर फिर
आया । इतनेमे तूये-ध्वनि सुनकर राघवने विराधितसे पूछा;
“सेना लेकर यहद कौन रोमांचित होकर आता हुआ दीख पड़ रहा
है ।” यह सुनकर, नेत्रांनददायक चन्द्रोदर पुत्र विराधितने कहा;
कि सुप्रीव ओर बालि ये दो भाई-भाई हैं । उनमेंसे बढ़ा भाई
संन्यास केकर चखा गया हे । ओर इसको किसी दुष्टने पराजय
देकर बनवासमे डाल दिया ह । यह, सुररवकछा पुत्र, विमलमति
ताराका स्वामी ओर वानरध्वजी, वही सुग्रीव है जिसका नाम
कथा-कहानियोमें सुना जाता हे ।।१-६॥
{ ५] इस भ्रकार राम-खदमण ओर विराधितमे बातें हो दी
रही थी कि इतनेमें उन्होने सुप्रीवको वैसे हो देखा जैसे आगम
त्रिखोक ओर त्रिकाल को देखते दै । आते हुए वे ऐसे लगे मानों
चारों दिग्गज एक साथ मिल गये हो । जाम्बवन्तने उन्हें बैठाया ।
तदनन्तर आदर पूवक छच्मणने सुप्रोवसे पृष्ठा छि तुम्हारी पत्नी
का अपहरण किसने किया । यह सुनकर जाम्बरवन्त अपना माथा
मुकाकर सारा ृत्तान्त सुनाने ख्गा । (उसने का ) कि जब सुप्रीव
वनक्रीढ़ा करनेके छिए गया था तो माया सुग्रीव उसके घरमे घुस-
कर बेट गया । बाछिका अनुज सुप्रोव जब अपने मन्त्रियोके साथ
धर छोटा तो कोड भी यह पहचान नहीं कर सखा कि उन दोनोमें
असली राजा कौन है । सवके मनमें आश्चयं हो रहा था । इतनेमे
कुतृहछ-जनक घो सुप्रीव देखकर, असी सुप्रोवकी सेना हर्षसे
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