पउमचारिउ भाग - 3 | Paumachariu Bhag - 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Paumachariu Bhag - 3  by एच॰ सी॰ भायाणी - H. C. Bhayani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एच० सी० भायाणी-H. C. Bhayani

Add Infomation AboutH. C. Bhayani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वियालोसभो संधि फे [ ४ ] यह सुनकर बिराधितने दषपृवेक कदा, “भीतर ऊे आओ । सचमुच में धन्य हुआ कि जो किष्किधानरेश, स्वयं अभिमान छोड़कर मेरी शरणमें आये ।” तब सम्मानित होकर दूत वापस गया ओर आनन्दके साथ अपने स्वामीको छेकर फिर आया । इतनेमे तूये-ध्वनि सुनकर राघवने विराधितसे पूछा; “सेना लेकर यहद कौन रोमांचित होकर आता हुआ दीख पड़ रहा है ।” यह सुनकर, नेत्रांनददायक चन्द्रोदर पुत्र विराधितने कहा; कि सुप्रीव ओर बालि ये दो भाई-भाई हैं । उनमेंसे बढ़ा भाई संन्यास केकर चखा गया हे । ओर इसको किसी दुष्टने पराजय देकर बनवासमे डाल दिया ह । यह, सुररवकछा पुत्र, विमलमति ताराका स्वामी ओर वानरध्वजी, वही सुग्रीव है जिसका नाम कथा-कहानियोमें सुना जाता हे ।।१-६॥ { ५] इस भ्रकार राम-खदमण ओर विराधितमे बातें हो दी रही थी कि इतनेमें उन्होने सुप्रीवको वैसे हो देखा जैसे आगम त्रिखोक ओर त्रिकाल को देखते दै । आते हुए वे ऐसे लगे मानों चारों दिग्गज एक साथ मिल गये हो । जाम्बवन्तने उन्हें बैठाया । तदनन्तर आदर पूवक छच्मणने सुप्रोवसे पृष्ठा छि तुम्हारी पत्नी का अपहरण किसने किया । यह सुनकर जाम्बरवन्त अपना माथा मुकाकर सारा ृत्तान्त सुनाने ख्गा । (उसने का ) कि जब सुप्रीव वनक्रीढ़ा करनेके छिए गया था तो माया सुग्रीव उसके घरमे घुस- कर बेट गया । बाछिका अनुज सुप्रोव जब अपने मन्त्रियोके साथ धर छोटा तो कोड भी यह पहचान नहीं कर सखा कि उन दोनोमें असली राजा कौन है । सवके मनमें आश्चयं हो रहा था । इतनेमे कुतृहछ-जनक घो सुप्रीव देखकर, असी सुप्रोवकी सेना हर्षसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now