धर्म व्याख्या | Dharam Vyakhya

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Dharam Vyakhya by हुक्मीचंद जी -Hukmichand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) अपने पत्त में म्स्ताव पास करा लेते हैं । ऐसे प्रजा-नाशक कानूनों के बनाने के समय उसका विरोध करना प्रजा की श्योर से चुनेगये मेम्वरें का कर्षव्य है । कितु वे लोग नगर्यै पर ध्यान न देकर, शरपेने कव्य से गिर जति दे । कुय लोग कहते हैं कि ऐसे गिलों का पिरोध करके, यदि कफो मनुष्य उन्हे रकग दे, तो उससे तो राजा का विरोध होगा श्र राजा के विरुद्ध काम करने की शासों में मनाई है । ऐसा फ्हनेगले शाख्र के मम को नददी जानते । शाख्र में एक जगह श्राया दे कि- * विरुद्ध रज्जाड कम्मे प्रथीत्‌-राज्य के विरुद्ध काथं न करना चाहिये । शाख्र तो कहता रे कि राज्य के विरुद्ध कार्य न करना चाहिए और लोगों ने इसका यदद ग्र्थ लगाया ट कि राजा के वि- रुद्ध कोई कार्य न करना चाहिए । राज्य, देश की सु-न्ययस्था को कहते हैं । उसका विरोध न करने के लिये जैन-शात्र की आज्ञा है। परन्तु राजा वी श्र मीति के विस्द्ध कार्य करने को जेन-शाखर कहीं नहीं रोकता । श्राज, शरान) गाना, भङ्ग शादि के प्रचार की ठकार सरकार होरही यदि सरकार की आबकारी वी श्राय कम हो श्रौर बट एक सरमयूलर निकाल दे र * प्रत्येक प्रजाजन को एक एक ग्लास शराय रोज पीनी चाहिए, ताकि राज्य के श्रा चफकारी विभाग वी आय बढ़जाय ” तो क्‍या इस श्राज्ञा का पालन




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