धरती की करवट | Dharti Ki Karvat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.85 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घरती की करवट / 15 1 रिन्द नदी से कोई दो मील उत्तर कानपुर दहर से - दक्षिण-पूरव में बसी किशनगढ़ काफी बड़ा गाँव है। आवादी कोई दो हज़ार होगी । यहाँ सभी जातियों के लोग हैं ब्राह्मण ठाकुर और अहीर अधिक संख्या में । गाँव में सप्ताह में दो बार बाज़ार लगतां है । यहाँ के ज़मींदार काफ़ी बड़े हैं । उनके सात मुसेत्लम गाँव हैं । गाँव के उत्तर-पूर्वे में करीब बाठ बीघे के अहाते के अन्दर जमीदार का दो-मंजिला महल है जिसे लोग गढ़ी कहते हैं। गढ़ी का प्रवेश द्वार उत्तर की मोर है फाटक से घुसते हो थड़ा सहन । सहन में पश्चिम की और घड़ी फुलवारी जिसमें गेंदा गुलाब और चमेली के पौधे हैं। कलमी भाम भौर अमरूद के भी पेड़े हैं । एक पेड़ नीम का भी है। सहन पार कर कुछें सीढ़ि याँ चढ़ने पर महल के प्रवेश द्वार पर पहुंचते हैं । यहाँ एके बड़ा चौपाल-सा वना है जहाँ टाट बिछाये कारिन्दे जमींदार का काम कियो करते हैं । यहद स्थान ड्योढ़ी कहलाता है। दरवाज़े से अन्दर जाने पर एक बड़ा आँगन है। इस आँगन के पूर्व की ओर जनानखाना है और दक्षिण की ओर मर्दों के बठने के लिए कई बड़े-बड़े कमरे । इन कमरों के सामने बारह खम्बों का .एक बरामदा है जो बारंहदरी कहलाता है । गाँव वालों से ज़मींदार यहों मिलते हैं। आँगन के पश्चिम में एक दरवाज़ा है। इंससे मेहमानखानें जा सकते हैं मेहमानखाना ऐसा बना है जैसे इस महल की ही दूसरी प्रति हो । उसेकां मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है बहाँ भी सहन है ओर सहन के पूर्व में है फुलवारी जिसे महल की पुल- वारी से सिंफ़े एक दीवार अलग करती है। सहन पार करने पर डूयोढ़ी जेसी जगह फिर दरवाजा और अन्दर एक आँगन | इस आँगन के बाद दक्षिण में बारहदरी और पुरुषों के बैठने के कमरे और पश्चिम की ओर जनानखाना 1 महल के अहाते के दक्षिण में एक बड़ा गलियारा है । इस गलियारे के पार हे ठाकुरों का टोला । ठाकुरों के मकानों के चौपाल आमतौर से पवके हैं वाकी घर कच्चे । ठाकुरों के टोले से लगा ब्राह्मणों का टोला है । ब्राह्मणों में उमीदार के पुरोहित घनेश्वर मिश्र का मकान करीब-करीब कुल पवका एक मंजिल का है । दाकी ब्राह्मणों के मकान कच्चे हैं । किन्हीं-
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