अकबरी दरबार भाग - 1 | Akabari Darabar Bhag - 1

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Akabari Darabar Bhag - 1  by रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ 1] पाया । फिर याद श्राया कि कस्तूरी का एक नाफा है); उसे निकालकर तोडा श्रौर थोडी थोड़ी कस्तूरी सबकोदेदीकि शकुन खाली न जाय । भाग्यने कहा होगाकि जी छोटा न करना; इसके प्रताप का सौरभ सारे संसारम कस्तूरी के सौरभ की भाँति फैलेगा । इस नवजात शिशु को इश्वर ने जिस प्रकार इतना बड़ा साम्राज्य और इतना वैभव दिया, उसी प्रकार इसके जन्म के समय ग्रह्दों को भी ऐसे ढंग से रखा कि जिसे देखकर अब तक बड़े बड़े ज्योतिषी चकित होते हैं । हुमायूँ स्वयं ज्योतिष शास्त्र का अच्छा ज्ञाता था । उह प्रायः उसकी जन्मकुंडलो देखा करता था ओर कहता था कि कई बातों में इसकी कुंडली 'अमीर तैमूर की कुंडली से भी कहीं अच्छी है । उसके खास मुसाहबों का कहना है कि कभी कभी ऐसा होता था कि वह देखते देखते उठ खड़ा होता था, कमरे का दरवाजा बंद कर लेता था, तालियाँ बजाकर उछलता था श्र मारे खुशी के चकफेरि्यो लिया करता था । अकबर अभी गभ में ही था और मीर शम्पुदीन मुहम्मद्‌ (विवरण के लिये देखो परिशिष्ट ) की ख्त्री भी गभवती थी । हमीदा वगम ने उसस वादा किया था कि मरे घरजो बालक होगा, उसे में तुम्हारा दूध पिलाउऊँगी । जिस समय अकवर का जन्म हुश्शा, उस समय तक उसके घर कुछ भी न हुआ था | वेगम न पहले तो अपना दूघ पिलाया; फिर कं ओर खखियां पिलाती रही; श्रौर जब थोड़े दिनों बाद उसके धर संतान हुई, तब वह्‌ दूध पिलाने लगी । पर अकबर ने विशेषतः उसी का दूध पिया था और इसी लिये वह उसे जीजी कहा करता था ।




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